Friday, March 31, 2023
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Total Samachar राज्यपाल द्वारा नैक मूल्यांकन प्रस्तुतिकरण की समीक्षा

 

राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने आज बतौर कुलाध्यक्ष डॉ शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय, लखनऊ के नैक मूल्यांकन हेतु तैयार प्रस्तुतिकरण की समीक्षा की। विश्वविद्यालय ने अपने प्रथम नैक ग्रेडिंग के लिए तैयार सेल्फ स्टडी रिपोर्ट को सभी सातों मूल्यांकन क्राइटेरिया पर बिंदुवार प्रस्तुतिकरण दिया। राज्यपाल ने प्रस्तुतिकरण को सुदृढ़ किए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए क्राइटेरिया सात का पुनर्लेखन करने तथा क्राइटेरिया छः में भी अधिकतम सुधारों के साथ लेखन करने को कहा।सेल्फ स्टडी रिपोर्ट एसएसआर हाइपर लिंक्स में लगे फोटोग्राफ पर निराशा प्रकट करते हुए राज्यपाल जी ने गुणवत्ता सुधारने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक फोटो विद्यार्थियों की गतिविधि दर्शाने वाला तथा कार्यक्रम के विवरण युक्त कैप्शन के साथ लगाया जाए। उन्होंने कुलपति प्रो राणा कृष्णपाल सिंह को निर्देश दिया कि वे भारत में अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों का भ्रमण करके वहाँ की विशेषताओं के अनुरूप इस विश्वविद्यालय में भी गुणवत्ता सुधार करें। उन्होंने इस संदर्भ मेें गुजरात में गांधीनगर, सूरत तथा उप्र के नैक मूल्यांकन में ए++ ग्रेड प्राप्त विश्वविद्यालयों से सम्पर्क करने पर जोर दिया। दिव्यांगजनों के लिए विशेषरूप से जनहित कारी कार्यों का अवलोकन करते हुए राज्यपाल ने उनके सम्यक प्रस्तुतिकरण के अभाव को लक्ष्य किया। उन्होंने निर्देश दिया कि कृत्रिम अंगों को प्राप्त कर चुके लाभार्थियों के जीवन में आये सकारात्मक बदलावों की सक्सेस स्टोरी भी प्रस्तुत की जाए।

विश्वविद्यालय को अपना सामुदायिक रेडियो भी प्रारम्भ करने का सुझाव दिया, जिससे मूल्यांकन में अंक गणना को भी बेहतर किया जा सके। उन्होंने सुझाव दिया कि सामुदायिक रेडियो के लिए विश्वविद्यालय लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक रेडियो ‘‘गूंज‘‘ से अपने समय हेतु अनुबंध कर सकता है। उन्होंने सभी क्राइटेरिया में नैक मूल्यांकन हेतु पियर टीम के सुलभ संदर्भ के लिए छोटी-छोटी विवरण पुस्तिकाएं भी बनाने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की नैक ग्रेडिंग हेतु गठित टीम के सभी सदस्य आपसी तालमेल के साथ ए++ ग्रेड के लिए सशक्त एस0एस0आर0 दाखिल करें। टीम के सभी सदस्य अपने प्रस्तुतिकरण का पुनरावलोकन करें और समीक्षा के दौरान दिए गए सभी निर्देशों को बेहतर सुधारों के साथ लागू करें।

बैठक में अपर मुख्य सचिव राज्यपाल श्रीमती कल्पना अवस्थी, विशेष कार्याधिकारी शिक्षा श्री पंकज जॉनी, विशेष सचिव दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, विश्वविद्यालय के कुलपति तथा गठित नैक टीम के सभी सदस्य एवं अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे।

Total Samachar दृश्यता का अंतरराष्ट्रीय पर लिंगी दिवस( इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे आफ विजिबिलिटी)

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डॉ आलोक चांटिया, अखिल भारतीय अधिकार

संगठनट्रांसजेंडर यानी लिंग के परे। यह दिवस 31 मार्च को मनाया जाता है। यहीं पर यह समझने की आवश्यकता है कि जैविक शब्द सेक्स का सांस्कृतिक रूपांतरण ही जेंडर है जिसके आधार पर मानव संस्कृति ने अपने उद्भव के समय से लेकर आज तक सिर्फ स्त्री और पुरुष को ही सामान्य मानते हुए सारे सांस्कृतिक कार्यों के लिए उचित और मानक के अनुरूप माना है लेकिन त्रुटि भी प्रकृति का एक प्राकृतिक नियम है और वह भी शृष्टि के समस्त जीव-जंतुओं पर प्रभावी होता है यही कारण है कि कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं जब मानक के अनुरूप स्त्री या पुरुष अपने शरीर में उस तरह के लक्षण नहीं पाते हैं जो उनमें होने चाहिए अनुवांशिकता के के आधार पर भी मानव के शरीर में भिन्नता पाई जा सकती है और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी कोई महिला होते हुए भी अपने अंदर पुरुष के गुणों को ज्यादा अनुभव करता है या फिर पुरुष होते हुए उसके अंदर स्त्री के गुण ज्यादा महसूस होते हैं यही कारण है कि जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शरीर की स्वयं की स्वतंत्रता का एक प्रयास विश्व स्तर पर धीरे-धीरे आरंभ हुआ तो वह लोग जो इस जटिलता के साथ जी रहे थे एक घुटन महसूस कर रहे थे उन्होंने दुनिया और समाज के सामने यह कहना आरंभ किया कि वे वह नहीं है जो प्रदर्शित हो रहा है और संक्रमण के इस काल में धीरे-धीरे उनकी अपनी पहचान बनने लगी और वर्ष 2009 में मिशीगन की राहिल क्रैनडन द्वारा अंतरराष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे मनाया जाने का प्रयास शुरू हुआ जिसमें इस बात की जागरूकता और लोगों को संवेदनशील करने का प्रयास किया गया कि समाज ट्रांसजेंडर के अस्तित्व को स्वीकार है और उन्हें भी समान रूप से आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करें।

ट्रांसजेंडर में हर व्यक्ति ने बचपन से किन्नर हिजड़े को भी देखा है लेकिन यह समझना आवश्यक है कि विज्ञान की परिभाषा में यह क्या होते हैं यह एक सामान्य सब वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव जीवन 46 गुण सूत्रों से मिलकर बना है जिसमें से 23 गुणसूत्र मां की या महिला से प्राप्त होते हैं और 23 गुणसूत्र बच्चे को पिता या पुरुष से प्राप्त होते हैं प्रजनन की क्रिया के उपरांत यह 23 जोड़ी गुणसूत्र ही गर्भ में मानव जीवन का निर्माण करते हैं लेकिन कोशिका विभाजन के मेटा फेस में कई बार ऐसी स्थिति आती हैं कि यही गुणसूत्र अपने विखंडन में अनियमित हो जाते हैं और इस अनियमितता के कारण ही उस तरह के पुरुष या स्त्री का निर्माण नहीं हो पाता है जो सामान्य रूप से हम देखते हैं और यह भी हम जानते हैं की लड़की के जन्म के लिए एक्स एक्स गुणसूत्र और लड़के के पैदा होने के लिए एक्स वाई गुणसूत्र जिम्मेदार होते हैं लेकिन कई बार ऐसा होता है कि गुणसूत्रों में अनियमितता हो जाती है और लड़की पैदा तो होती है वह दिखाई भी लड़की की तरह ही देती है लेकिन वास्तव में वह पूर्ण रूप से विकसित लड़की नहीं बन पाती है क्योंकि उसका अनुवांशिक स्तर पर गुणसूत्रों का जोड़ा अनुपस्थित होता है अर्थात XO की संरचना के कारण ही एक्स एक्स से बनने वाली लड़की एक अधूरी लड़की की तरह दिखाई देती है जिसका चेहरा शरीर तो लड़की जैसा होता है लेकिन जननांग गर्भाशय विकसित नहीं हो पाते हैं और इस अनियमितता को टर्नर सिंड्रोम कहते हैं सिंड्रोम का तात्पर्य है एक साथ शरीर में कई अनियमितता का उत्पन्न हो जाना इसी तरह से दूसरा सिंड्रोम क्लाइनफेल्टर होता है इसमें लड़के के बनने की अनुवांशिक संरचना में एक्स वाई की जगह 2X और एक वाई हो जाता है और जन्म तो लड़के का होता है दिखाई भी वह लड़के जैसा देता है लेकिन उसके जननांग पुरुष के अनुरूप नहीं होते हैं और इन्हीं लोगों को हम किन्नर या हिजड़ा कहते हैं लेकिन इसके अतिरिक्त भी नेचर नर्चर व्यवस्था के अंतर्गत जिसमें अनुवांशिकी और पर्यावरण के कारण मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी बहुत से पुरुष और स्त्री अपने अंदर जो होते हैं उसके विपरीत अपने अंदर लक्षणों को महसूस करते हैं जैसे पुरुष को अपने अंदर महिला के लक्षण महसूस होते हैं महिला को अपने अंदर पुरुष के लक्षण महसूस होते हैं और यही कारण है कि पूरे वैश्विक स्तर पर एलजीबीटीक्यू की बहस चल रही है लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं क्योंकि आज तक जितनी भी वैश्विक स्तर पर नौकरी हैं सामाजिक पद हैं राजनीतिक पद हैं उनमें सिर्फ महिला और पुरुष को ही महत्व दिया गया है कभी ट्रांसजेंडर को कोई स्थान नहीं दिया गया यही कारण है कि जब वैश्विक स्तर पर ट्रांसजेंडर भी अपने अस्तित्व और अपनी गरिमा पूर्ण जीवन की लड़ाई लड़ने लगे तो उन्हें कई विषमता और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा समाज में उन्हें हीन भावना से देखा गया और उसी के विरुद्ध लोगों में संवेदनशीलता जागरूकता जगाने के लिए दृश्यता का अंतरराष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे मनाए जाने का प्रयास 2009 से चल रहा है।

हिजड़ों किन्नर के बारे में ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि जब भी उनके घरों पर कोई भी शुभ कार्य होता है चाहे बच्चों का जन्म हो चाहे शादी हो मुंडन हो कोई भी शुभ कार्य होता है तो वह आते हैं गाना गाते हैं अपना आशीर्वाद देते हैं और एक धनराशि लेकर जाते हैं जिससे वह अपना जीवन जीते हैं यह भी एक सत्य है कि इनको जलाया नहीं जाता है पानी में मरने के बाद प्रवाहित कर दिया जाता है इनकी लाश के लिए टिट्ठी नहीं बनती है इनकी लाश को खड़े-खड़े ले जाया जाता है लेकिन अब बहुत कुछ बदल रहा है यदि हम भारत के संदर्भ में देखें तो अभी नहीं जगत में फिल्म उद्योग में बॉबी डार्लिंग नव्या सिंह जैसे ट्रांसजेंडर अभिनेत्रियों से हम सब भलीभांति परिचित हैं जिन्होंने यह स्थापित किया कि अपने लिंग को लेकर किसी के मन में कुंठा नहीं होनी चाहिए और वह भी इस दुनिया में अपनी प्रतिभा को उसी तरह दिखा सकते हैं जैसे दूसरे दिखा रहे हैं और उनके इस संघर्ष को दुनिया ने स्वीकार भी किया आज यह कोई नहीं कह सकता है कि ट्रांसजेंडर में किसी भी तरह की क्षमताओं की कमी होती है प्रिया वीएस ने ना सिर्फ केरल में डॉक्टर होने की परीक्षा दी उसमें उतरी नहीं बल्कि ट्रांसजेंडर के रूप में एक सफल डॉक्टर के रूप में दुनिया को फिर एक आईना दिखाने का प्रयास किया कि ट्रांसजेंडर भी उन्हीं की तरह एक बराबर का मानव है 2017 में ज्योति मंडल पहली ट्रांसजेंडर जज बनी और इस बात को एक गति दी कि न्याय की दुनिया में भी ट्रांसजेंडर उतना ही प्रभावी ढंग से कार्य करता है जितना सामान्य स्त्री पुरुष करते हैं यदि एक निर्विवाद सत्य है कि ट्रांसजेंडर को हमने हमेशा एक अचंभे वाली वस्तु की तरह देखा है उसको देखकर हमारे मन में कौतूहल रहा है हमने सिर्फ अपने आनंद के लिए उनके जीवन को देखा है लेकिन पद्मिनी प्रकाश ने पहली न्यूज़ एंकर बनकर यह स्थापित किया कि ट्रांसजेंडर सिर्फ गाने बजाने और चिड़ियाघर के जानवरों की तरह देखने के लिए नहीं बने हैं वह कुछ भी कर सकते हैं और उनके इसी प्रयास के कारण 1994 में पहली बार ट्रांसजेंडर को मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ क्योंकि उससे पहले तक यह कोई व्यवस्था नहीं थी कि स्त्री या पुरुष लिंग के अतिरिक्त कोई भी मतदान का प्रयोग कर सकता है और उसका सुखद परिणाम या रहा शबनम मौसी राजस्थान से विधायक चुनी गई और वह भारत की पहली ट्रांसजेंडर विधायक बनी इन सारी बातों से यह स्थापित है कि ट्रांसजेंडर उतने ही सामान्य तरीके से कार्य करते हैं जितने सामान्य तरीके से एक सामान्य स्त्री पुरुष अपना कार्य करते हैं यही कारण है कि लोगों की रक्षा के लिए भी ट्रांसजेंडर ने अपना प्रयास किया और पृथक्करण यशिनी ने तमिलनाडु में 6 साल से ज्यादा कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद जिस पुलिस विभाग सेवा ट्रांसजेंडर होने के कारण परीक्षा में बैठने से अयोग्य कर दी गई थी उसी पुलिस विभाग में कानूनी लड़ाई लड़कर वह पहली सब इंस्पेक्टर बनी।

आज का युग उत्तर आधुनिकता का योग है प्रत्येक व्यक्ति का अपना मत है और उसका अपना दृष्टिकोण है इसलिए केवल समाज द्वारा यह निश्चित किया जाना कि कौन सा व्यक्ति समाज के लिए उपयुक्त है और कौन सा नहीं है यह एक सही प्रक्रिया नहीं है बल्कि व्यक्ति के द्वारा इस सोच को ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए कि वह अपने बारे में समाज के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है और अपने योगदान को समाज में किस तरह दे पा रहा है जोकि ट्रांसजेंडर के तमाम प्रयासों और उनकी सफलताओं से यह स्थापित है कि ट्रांसजेंडर को सिर्फ एक कौतूहल का विषय ना समझ कर उन्हें उस रूप में भी समझना चाहिए इस रूप को उन्होंने डॉ जज वकील विधायक इंस्पेक्टर बनकर स्थापित किया है अब इस परंपरा को खत्म किया जाना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति को अपने शरीर में सामान्य स्त्री पुरुष जैसे गुणों नहीं दिखाई दे रहे हैं तो वह समाज का हिस्सा नहीं है उसे जन्म के साथ ही गुमनामी जिंदगी की ओर अग्रसर कर देना चाहिए उसे बाहर के लोगों को जानने नहीं देना चाहिए या फिर इसे पूर्व के तरह ही किन्नर या हिजड़ों को दे देना चाहिए क्योंकि अब स्थितियां बदल गई हैं आप ट्रांसजेंडर वह सब कुछ कर सकते हैं जिसको समाज ने जानबूझकर संस्कृति के नाम पर प्रतिबंधित किया था अब इस मकड़जाल से भी व्यक्ति को ऊपर उठना होगा कि सिर्फ शिखंडी भीष्म पितामह को मारने के लिए ही उपयुक्त है बल्कि इस तरह की शारीरिक विशेषताओं वाले लोगों में किसी भी महा योद्धा को हराने की शक्ति भी होती है इस दृष्टिकोण को उत्पन्न करना होगा हमें अर्धनारीश्वर के उस स्वरूप के इस वैज्ञानिकता को समझना होगा कि कोई ना पूरा आदमी होता है ना कोई पूरा औरत होता है बल्कि उसके शरीर में दोनों के गुणों के समावेश से ही जन्म होता है और यदि जन्म लेने की प्रक्रिया में किसी स्त्री या पुरुष के गुणों में कमी या अधिकता हो जाती है तो हमें उसे स्त्री या पुरुष की तरह ही मानते हुए सिर्फ बच्चा और प्रजनन और संबंधों को बनाने की कड़ी से ऊपर जाकर इन्हें समाज के वह सारे अवसर प्रदान करना है जो हम स्वयं अपने लिए सोचते हैं तभी अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर डे अपने प्रासंगिकता को भी सिद्ध कर पाएगा और हम भी सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र 1948 के प्रथम अनुच्छेद के अनुसार इस बात को वास्तविकता में स्थापित कर पाएंगे कि इस पृथ्वी पर जो भी व्यक्ति पैदा हो रहा है जन्म ले रहा है वह जन्म से ही स्वतंत्र और समानता का अधिकार लेकर आ रहा है उसको बाधित करके उसके मानवाधिकार के उल्लंघन का कोई भी अधिकार किसी को प्राप्त नहीं है और यही विश्व बंधुत्व समानता का वास्तविक बोध होगा।

Total Samachar वडोदरा में श्री रामनवमी की शोभायात्रा पर हुआ पथरा पुलिस ने किया लाठीचार्ज

सत्यम सिंह ठाकुर, गुजरात
बड़ोदरा में आज उस वक्त अफरा तफरी मच गई जब बड़ोदरा के फतेहपुरा गरनाडा इलाके की एक मस्जिद के पास से श्री रामनवमी की शोभायात्रा पर अचानक पथराव शुरू हो गया पथराव के बाद दोनों समुदाय के लोग आमने सामने आ गए और तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया वीएचपी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि शोभा यात्रा शांतिपूर्ण तरीके से गुजर रही थी लेकिन अचानक उन पर मस्जिद के पास पथराव किया गया इस टकराव के दौरान कई वाहनों और दुकानों को भी टारगेट किया गया पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मोर्चा संभाला आला अधिकारियों और दल बल के साथ पहुंची पुलिस ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए लाठीचार्ज किया फिलहाल स्थिति काबू में है ऐसा बताया जा रहा है।

गौरतलब है कि पिछले साल भी इसी तरह से खंभात और हिम्मतनगर में रामनवमी की शोभायात्रा पर पथराव के बाद तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था और बाद में आरोपियों के घरों पर पुलिस ने बुलडोजर भी चलाया था।

वडोदरा में रामनवमी की शोभायात्रा में दूसरी बार भी हुई पथराव की घटना फतेहपुरा इलाके में ही हुई दोबारा पथराव की घटना पुलिस ने 10 मिनट के भीतर ही स्थिति पर नियंत्रण पा लिया इस समय पुलिस के कमिश्नर सहित तमाम आला अधिकारी पूरे दलबल के साथ यात्रा में मौजूद फिलहाल स्थिति शांतिपूर्ण बनी हुई है

Total Samachar संघ के स्वयंसेवकों का पथ संचलन

लखनऊ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लखनऊ पूरब भाग गोमती नगर का पथ संचलन आज बड़े ही हर्षोल्लास से संपन्न हुआ। यह पद संचलन विराम खंड 1 स्थित रिवर्स साइड अकेडमी के बगल वाले पार्क से शाम 5:00 बजे प्रारंभ होकर मलिक टिंबर, मिनी स्टेडियम विनय खंड , विवेक खंड, पत्रकारपुरम चौराहा होते हुए विकासखंड से मुड़ कर होते हुए अपने निश्चित स्थान पर पहुंचा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता बहुत ही अनुशासित तरीके से अपने परंपरागत घोष वाद्य के साथ पथ संचलन कर रहे थे पथ संचलन के पूरे मार्ग में सर्व समाज के लोगों द्वारा जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल थे स्वयंसेवकों पर पुष्प वर्षा कर रहे थे।

 

इस कार्यक्रम में भाग के भाग एवं नगर के दायित्व वान एवं स्वयंसेवकों की उपस्थिति से कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्धन हो रहा था पद संचलन प्रारंभ होने से पहले संघ के विभाग प्रचारक अनिल जी का संबोधन बहुत ही उत्साहवर्धक एवं प्रेरणादायक रहा कार्यक्रम में नगर क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगने वाली शाखाओं के सभी स्वयंसेवकों की भागीदारी रही जो स्वयंसेवक किसी कारणों से पथ संचलन में भाग नहीं ले सकते थे उन्हें दूसरी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी सौंपी गई थी नगर के स्वयंसेवकों का योगदान प्रशंसनीय रहा !

इस अवसर पर उपस्थित प्रांत के सेवा प्रमुख डा देवेंद्र अस्थाना, भाग कार्यवाह ज्योति प्रकाश, सेवा प्रमुख सत्येंद्र ,नगर कार्यवाह राजीव, सह नगर कार्यवाह गौरव
सुधाकर , प्रचार प्रमुख राममूर्ति अन्य कई जिम्मेदार दायित्व वान स्वयंसेवक उपस्थित रहे

Total Samachar राम को किसने कितना जाना रामनवमी पर विशेष

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डॉ आलोक चांटिया

इक्ष्वाकु वंश के प्रथम राजा इक्ष्वाकु और कुल मिलाकर 18 राजा हुए जिसमें रामचंद्र जी भी प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में एक कौशल नरेश दशरथ के पुत्र थे इसी क्रम में यदि हिंदू धर्म के दसों अवतार की बात करें तो सातवां अवतार भगवान श्री राम कथा जो चैत्र नवमी के दिन इस पृथ्वी पर अवतरित हुए यहां पर यह भी समझने की नितांत आवश्यकता है कि किसी भी मनुष्य को जो दिखाई दे रहा है उसे ही पूर्ण सत्य नहीं माना गया है जो उसकी यह संसारी का आंखें नहीं दे पा रही हैं वही अमूर्त सत्य है और उसकी खोज करना ही उस परम सत्ता को प्राप्त करने का अंतिम लक्ष्य होता है लेकिन हर व्यक्ति उस परम सत्ता को पाने के लिए इस अमूर्त स्थिति के माध्यम से होकर नहीं गुजरता है और यही कारण है कि वह स्थूल रूप में उस परम सत्ता को इस पृथ्वी पर अवतारवाद के माध्यम से महसूस करता है देखता है और इसी क्रम में त्रेता युग में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ यदि हम भगवान श्री राम के जन्म को एक दृष्टिकोण के आधार पर देखने का प्रयास करें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जब समाज सतयुग की स्थिति से बाहर निकलकर त्रेता में प्रवेश कर रहा था अर्थात जब बिना किसी नियम को बनाए हुए समाज में एक स्थिति को जीने वाला प्रत्येक मनुष्य एक ऐसे युग में प्रवेश कर रहा था जब संबंधों परंपराओं के लिए एक नियम की लकीर खींची जा रही थी और इसी अर्थ में जब प्रभु श्रीराम के जीवन को कोई मनुष्य सार्थक रूप से समझने का प्रयास करता है तो उसे सबसे पहली बात यही समझ में आती है किराम का काल एक ऐसा काल था जिसमें संबंधों को परिभाषित किया जा रहा था जिसमें परंपराओं को परिभाषित किया जा रहा था जिसमें दायित्व को परिभाषित किया जा रहा था मर्यादा को परिभाषित किया जा रहा था और यही कारण है कि राम के संपूर्ण जीवन में माता-पिता की सर्वोच्चता को जिस तरह से स्थापित किया गया है वह वर्तमान के समाज में एक आदर्श प्रकाश पुंज की तरह स्थापित होना चाहिए कि माता-पिता के द्वारा निकले हुए शब्द उनकी संतानों के लिए अंतिम सत्य के रूप में होने चाहिए और उन शब्दों की स्थापना के लिए व्यक्ति को अपने किसी सुख अपनी किसी लालच अपने किसी उद्देश्य को सामने नहीं आने देना चाहिए जैसे श्रीराम ने पिता के निर्देशों का सम्मान करते हुए अयोध्या के पद पर आरूढ़ होने के बजाय वन गमन करना ज्यादा श्रेष्ठ कार्य समझा लेकिन इसी के समानांतर जहां पर केकई को दिए गए वरदान को निभाने के लिए दशरथ ने अथाह दर्द से कर भी राम को वनवास का आदेश दिया वहीं पर पति-पत्नी के संबंधों में उर्मिला द्वारा लक्ष्मण के आदेश मानना और सीता द्वारा अपने पति की अनुगामी बनकर वन की ओर प्रस्थान करना वर्तमान के परिवेश में भी है स्थापित करता है पति पत्नी के बीच संबंध नाभिक के उस प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की तरह होनी चाहिए जिनसे किसी परमाणु की संरचना का स्थायित्व सुनिश्चित होता है और समाज का स्थायित्व पति-पत्नी के इसी सोच और इसी संबंधों से स्थापित होता है जो राम के त्रेतायुग का सबसे बड़ा संदेश है
वन गमन के दौरान केवट के रूप में निषादराज की सहायता लेना शबरी के बेर खाना श्रीराम द्वारा इस तथ्य को परिभाषित करने के सबसे बड़े उद्देश्य हैं कि समाज में प्रत्येक वर्ग जाति उपजाति के लोग एक दूसरे के सहायक होते हैं उनको भोजन के आधार पर कार्य के आधार पर अलग नहीं किया जा सकता है मानव होने के आधार पर किसी भी व्यक्ति का सम्मान होना चाहिए यही नहीं मां सीता का अपहरण और उसके लिए प्रभु श्री राम का रावण से युद्ध करना फिर उसी पति पत्नी के संबंध की सर्वोच्चता की स्थापना को दर्शाता है जहां पर पति के लिए इस्पात की नैतिकता सर्वोच्च होनी चाहिए कि जिस पत्नी को विवाह करके वह लाया है यदि वह किसी संकट में फंस गई है यदि वह किसी संकट से निकलने में अपने को असमर्थ पा रही है तो वहां किसी भी विवेचना के बजाय सर्वप्रथम पति को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए विवाह के समय ली गई शपथ के प्रकाश में पत्नी के गरिमा अस्तित्व की रक्षा करनी चाहिए और यही नहीं तत्कालीन समय की लंका में भी चाहे सुलोचना हो चाहे मंदोदरी हो वे लोग भी अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाकर ही खड़ी थी

लेकिन श्रीराम जब लोक मंगलकारी भावना के तहत अयोध्या के राजा बनते हैं तब वहां पर परिवार स्वयं का जीवन समाज और देश से गौण हो जाते हैं और इसका सबसे सुंदर उदाहरण भी श्री राम द्वारा ही प्रस्तुत किया गया जब उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पराकाष्ठा में अपने साम्राज्य के सबसे छोटे स्तर के व्यक्ति के द्वारा मां सीता के लिए कहे गए अपने विचार को सर्वोच्च स्तर प्रदान करते हुए उस धोबी को कोई सजा देने के बजाय या उसका तिरस्कार करने के बजाए या उसे इस बात का आरोपी बनाने के बजाय कि तुमने राजा या रानी के विरुद्ध से कैसे कहा उन्होंने लोकतंत्र की सुंदर कल्पना में या स्थापित किया कि लोकतंत्र वही है जहां छोटे से छोटा व्यक्ति राजा पर उंगली उठाने के लिए स्वतंत्र होता है और राजा भी उसकी किसी भी वक्तव्य को उपेक्षित करने के बजाए उस पर तथ्यात्मक निर्णय लेने के लिए अग्रसर होता है जो श्रीराम द्वारा मां सीता के वनवास के निर्णय से परिलक्षित होता है

प्रभु श्रीराम के जीवन से यह भी एक निष्कर्ष वर्तमान समाज के सामने भी निकल कर आता है कि राज्य और स्वयं का व्यक्तिगत जीवन अलग जरूर होता है लेकिन व्यक्ति राज्य के हित में लिए गए निर्णय से यदि स्वयं के परिवार को प्रभावित होते देखता है तो अपने परिवार के विरुद्ध लिए गए निर्णय से अपने को भी उतना ही प्रभावित मानकर जीवन जीता है जितना उसके परिवार को कष्ट सहना पड़ा है यदि मां सीता को वनवास दिया गया तो प्रभु श्री राम ने भी जिस तरह अपने जीवन में जमीन पर सोना खाना खाने की परंपरा आज का परित्याग किया वह बताता है श्री राम इस बात को स्थापित करने में हमारे समक्ष एक प्रकाश पुंज की तरह रहे कि संबंधों के आधार पर राज्य नहीं चलते हैं लेकिन संबंध के लिए व्यक्तिगत जीवन में व्यक्ति को जिम्मेदार अवश्य होना चाहिए

जहां कबीर ने श्री राम को निराकार का एक तत्व माना है और दुल्हनी गांवो मंगल चार जैसे रहस्यवाद को लिखकर निराकार और साकार प्रभु की स्थापना किया है वैसे ही गोस्वामी तुलसीदास ने प्रभु श्री राम को साकार मानते हुए रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना कर दी
वर्तमान की भागती दौड़ती जिंदगी में जो व्यक्ति अपने धर्म की जटिलताओं से अपने को दूर पड़ता है तब राम नाम का बीजक मंत्र उसको उन सारे लाभों से लाभान्वित करता है जो वह किसी बड़ी उपासना को करके पाता और यही कारण है कि जब कोई राम-राम कहता है तो वह सिर्फ नमस्ते नहीं करता है बल्कि राम-राम को यदि अंकों के आधार पर जोड़ा जाए तो उसका जोड़ 108 होता है और यदि 27 नक्षत्रों और उनके चारों कलाओं को आपस में गुणित कर दिया जाए तो भी 108 ही होता है और इसीलिए माला जपने में जिस 108 मोतियों को हम गिनते हैं व्हाट्सएप राम राम कहने भर से ही पूर्ण हो जाती है

निराकार और साकार तत्वज्ञान में श्री राम की महत्ता के कारण ही मृत्यु के बाद अर्थी के साथ चलने वाले लोग यह कहते हैं राम नाम सत्य है क्योंकि इसके अतिरिक्त जो भी आप देख रहे हैं सत्य मानकर वह वास्तव में सत्य नहीं है वह सिर्फ आभासी सकते हैं जो कुछ समय बाद झूठ बन जाएगा जैसी आंखों को दिखाई देने वाला आकाश का रंग सत्यता से परे होता है ठीक ऐसे ही दुनिया में जो भी स्थूल रूप से दिखाई दे रहा है वह सत्य नहीं है सत्य जो है वह वही परम तत्व है जो श्री राम के रूप में त्रेता युग में इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ

यह तो कहा गया है संतोषम परम सुखम लेकिन इसका विस्तार यह कहकर किया गया है की होई है वही जो राम रचि राखा और इसका तात्पर्य भी यही है कि जीवन में सुख दुख खुशी दर्द जो भी है वह सिर्फ इसलिए है क्योंकि यही निर्धारित किया गया है हम सिर्फ उसको निभाने वाले एक पात्र हैं और इसको समझने के बाद ही व्यक्ति में संतोष आ जाता है जब वॉइस स्कूल दुनिया के सत्यता को समझ लेता है तो फिर वह किसी भी सुख दुख से प्रभावित नहीं होता जैसे कहा भी गया है चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग ।

चैत्र रामनवमी हर वर्ष हर हिंदू के जीवन से होकर गुजरता है भगवान श्रीराम का जन्म दिवस एक अवधारणा एक संबल एक आलंबन बनकर हर व्यक्ति के जीवन में नया उल्लास जगाता है लेकिन वर्तमान में श्री राम को लेकर जिस तरह से व्यक्ति स्थूल रूप से इस नाम के साथ दौड़ रहा है उसमें राम को सही रूप से स्थापित करने के लिए अपने जीवन में उसे राम के द्वारा प्रस्तुत किए गए उन आदर्शों को भी अपने जीवन में पिरोना होगा जिससे वह भारत जैसे देश में रहते हुए इस बात को महसूस कर सके की स्वर्णमई लंका लक्ष्मण मे ना रोचते जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी और जब इस तरह के निराकार भाव से एक हिंदू धर्म को मानने वाला व्यक्ति अपनी जन्मभूमि अपने माता-पिता अपने संबंधों को जीने लगेगा तो प्रभु श्री राम मंदिरों से नहीं प्रत्येक व्यक्ति के अंतस में स्थापित होंगे और उसका प्रभाव यह होगा होगा कि जब जब हमारे चारों और रावण अपना सिर उठाकर हमारी अखंडता हमारे ऐश्वर्य हमारी अस्मिता हमारे नारी शक्ति को हानि पहुंच आएंगे तब तक हमारे अंदर बैठे हुए राम नियमों और आदर्शों के मार्ग पर चलते हुए ऐसे रावण का संहार करने में स्वयं सक्षम होंगे लेकिन महत्वपूर्ण उसके लिए यही होगा कि हम राम की उन नैतिकता कोई स्मरण करें और उसको अपने अंदर स्थापित करने का प्रयास करें यही रामनवमी का अभीष्ट परिणाम होगा।

Total Samachar भजामि विंध्यवासिनीम

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भारतीय शास्त्रों ने प्रकृति के संक्रमण काल में उपासना का विशेष महत्व बताया है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नवदुर्गा के नौ दिन इसका अवसर प्रदान करते है। इस अवधि में भक्त जन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं। इसमें इक्यावन शक्तिपीठों के प्रति भी आस्था उपासना का भाव समाहित रहता है। सभी देविधामों को विलक्षण महिमा है। विंध्याचल धाम के त्रिकोण में स्थित मंदिरों की रचना भी अद्भुत है। यह पूरा क्षेत्र देवी उपासना की दृष्टि से सिद्ध माना जाता है-

निशुम्भशुम्भमर्दिनी, प्रचंडमुंडखंडनीम।
वने रणे प्रकाशिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम।
त्रिशुलमुंडधारिणीं, धराविघातहारणीम।
गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम।
दरिद्रदु:खहारिणीं, संता विभूतिकारिणीम |
वियोगशोकहारणीं, भजामि विंध्यवासिनीम।

देवी विंध्यवासिनी की महिमा आदि काल से विख्यात है। नवदुर्गा में यहां साधना उपासना का विशेष महत्व है। यहां के त्रिकोण क्षेत्र आध्यात्मिक वातावरण का सृजन स्वयं प्रकति करती है एक मान्यता के अनुसार विंध्यवासिनी मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। मीरजापुर में गंगा जी के तट पर मां विंध्यवासिनी का धाम है। यहां देवी के तीन रूपों का धाम है। इसे त्रिकोण कहा जाता है। विंध्याचल धाम के निकट ही अष्टभुजा और काली खोह का मंदिर है। अष्टभुजा मां को भगवान श्रीकृष्ण की सबसे छोटी और अंतिम बहन माना जाता है। श्रीकृष्ण के जन्म के समय ही इनका जन्म हुआ था। कंस ने जैसे ही इन्हें पत्थर पर पटका,वह आसमान की ओर चली गयीं थी। अष्टभुजा धाम में इनकी स्थापना हुई। यह मंदिर एक अति सुंदर पहाड़ी पर स्थित है। पहाड़ी पर गेरुआ तालाब भी प्रसिद्ध है। मां अष्टभुजा मंदिर परिसर में ही पातालपुरी का भी मंदिर है। यह एक छोटी गुफा में स्थित देवी मंदिर है। त्रिकोण परिक्रमा के अंतर्गत काली खोह है। रक्तबीज के संहार करते समय माँ ने काली रूप धारण किया था। उनको शांत करने हेतु शिव जी युद्ध भूमि में उनके सामने लेट गये थे। जब माँ काली का चरण शिव जी पर पड़ा। इसके बाद वह पहाडियों के खोह में छुप गयी थी। यह वही स्थान बताया जाता है। इसी कारण यहां का नामकरण खाली खोह हुआ। भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है।महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं-

विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्।

हे माता!
पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है-

विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी।

श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीष से हुआ।

मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती
देवी माहात्म्य के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं-देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी।
शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग अलग वर्णन मिलता है। शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी नंद बाबा की पुत्री।कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं । इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है। आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं,विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।

सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है।

लसत्सुलोललोचनां, लता सदे वरप्रदाम |
कपालदरिद्रदु:खहारिणींशूलधारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम |
करे मुदागदाधरीं, शिवा शिवप्रदायिनीम |
वरां वराननां शुभां, भजामि विंध्यवासिनीम |
ऋषीन्द्रजामिनींप्रदा,त्रिधास्वरुपधारिणींम |
जले थले निवासिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम।
विशिष्टसृष्टिकारिणीं, विशालरुपधारिणीम।

नवदुर्गा के अष्टम दिवस पर मां गौरी की उपासना होती है-
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥   महागौरी गौरवर्ण है। इसलिए इन्हें महागौरी कहा गया। उन्होंने कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था।उन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी,धन ऐश्वर्य प्रदायिनी,चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला भी कहा गया। वह माता महागौरी है। इनके वस्त्र और आभूषण आदि भी सफेद ही हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है। इनकी उपासना से शुभ प्रवृत्त कर्मों का जागरण होता है। सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। नैतिक व पवित्र आचरण का बोध प्राप्त होता है। सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है- सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।

ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

Total Samachar… गुजरात के मुख्य्मंत्री भूपेंद्र पटेल ने सिग्नेचर ब्रिज का किया दौरा।

सत्यम सिंह ठाकुर, गुजरात

द्वारका – देवभूमि द्वारका जिले के बेट द्वारका में डिमेलेशन स्थल पर मुलाकात की ओर ओखा से बेट द्वारका के बीच बन रहे सिग्नेचर ब्रिज का अवलोकन किया बेट द्वारका में 5 मास पहले जिला प्रसासन द्वारा डिमोलेशन की प्रक्रिया की गई थी और अब गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और गुजरात के गृह राज्यमंत्री हरसध संघवी ने आज बेट द्वारका में डिमोलेशन स्थल की मुलाकात की ओर साथ ही सिग्नेचर ब्रिज का कार्य प्रगति पर होने की वजह से अगले अक्टूबर तक पूरा कार्य पूर्ण करने की सम्भावनाये व्यक्त की गई है और जल्द जी गुजरात के सभी 1600 किमी समुद्री किनारे पर अवैध निर्मण को हटाए जानेकी भी बात मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने की ।

नरेन्द्र मोदी ने सुरक्षा सलामती ओर शांति की मजबूत नीव रखी थीं वोही मजबूत नीव को बरकरार रख कर ओर मजवूत हो उस कर लिए जिस भी जगह पर जो भी अन अधिकृत निर्माण हो उसे कानून व्यवस्था के मद्देनजर रख कर उसे हटाये जाने की प्रकिया करेंगे , गुजरात मे 1600 किमी लम्बा कोस्टल विस्तार है जिस वजह से यह जगह से कुछ भी गैरकानूनी कार्य हो सकता है तो वो कभी भी नही चलेगी ओर साथ ही सरकारी योजनाओं को गुजरात के सभी तबकों तक पहुचने का कार्य कर रहे है।

गुजरात मे जो भी कायदेसर रह रहे है उसे कुछ दिक्कत नही होगी पर जो गेर कायदेसर रीते रह रहे है तो 1600 किमी के कोस्टल विस्तार में उसे हटाने की प्रक्रिया करेंगे और सख़्त कार्यवाही करेंगे , राजा रणछोड़ के दरबार मे द्वारकाधीश के कोरिडोर ओर सिग्नेचर ब्रिज ऑक्टोबर तक पूर्ण करेंगे फिलहाल सिग्नेचर ब्रिज का कार्य प्रगति पर है।

Total Samachar डायरी खोलेगी रिश्वत के राज

सत्यम सिंह ठाकुर, गुजरात

फॉरेन ट्रैड के ज्वाइन डायरेक्टर जवरी मल की रिश्वत लेने के मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ़्तारी के बाद आत्महत्या भले ही कर ली हो मगर सीबीआई की तफ्तीश अभी भी जारी है ऐसे में सीबीआई के हाथ एक डायरी लगी है जिसमे रिश्वत के पैसे और उसके बटवारे की डिटेल है। इसके अलावा एक सीसीटीवी भी सामने आया है जिसमे नोटों से भरी बैग जवरी मल के घर से फेकि जा रही है।

दरअसल 24 मार्च को JOINT DIRECTOR GENERAL OF FOREIGN TRADE राजकोट के जवरीमल बिश्नोई को सीबीआई ने 10 लाख रिश्वत मांगने व लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था जिसके बाद उन्होंने अपने कार्यालय की चौथी मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।

इस मामले में पुलिस को बिश्नोई के घर से ₹10000000 नकद बरामद हुए हैं वही साथ ही एक डायरी मिली है जिसके अंदर पैसे की लेनदेन को लेकर काफी ऐसी जानकारियां हैं वही जबरी मल के घर के बाहर का एक सीसीटीवी भी सामने आया है जिसके अंदर घर से नोटों से भरा एक बैग चोरी छुपे से फेंका जा रहा है और जिसे एक व्यक्ति उठाकर लोगों की नजर बचाते हुए निकल जाता है

बहरहाल इस पूरे मामले में सीबीआई को उम्मीद है कि डायरी से कई ऐसे राशि का पर्दाफाश हो सकता है जो जबरी मल बिश्नोई की रिश्वतखोरी को और अच्छे से उजागर करेगी

Total Samachar पीसीबी की छापेमारी में गुजरात के सबसे बड़े क्रिकेट सट्टेबाजी-डब्बा ट्रेडिंग के 2000 करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश

सत्यम सिंह ठाकुर, गुजरात

पीसीबी की छापेमारी में गुजरात के सबसे बड़े क्रिकेट सट्टेबाजी-डब्बा ट्रेडिंग के 2000 करोड़ के घोटाले का पर्दाफास । पूर्व सुचना के आधार पर जब पीसीबी ने अहमदाबाद के मधुपुरा के सुमैल बिजनेस पार्क में छापा मारा तो पुलिस को भी अंदाजा नहीं था के क्रिकेट सट्टेबाजी का यहाँ इतना बड़ा रैकेट चल रहा होगा , पसीबी को जानकारी मिली थी की हर्षित जैन नाम का व्यक्ति महावीर इंटरप्राइजेज नाम की फर्म की आड़ में बड़े पैमाने पर क्रिकेट सट्टा, सट्टा और डब्बा कारोबार का अवैध कारोबार चला रहा ह। इस छापेमारी में पीसीबी ने जितेंद्र हीरागर , सतीश परिहार,अंकित गहलोत और नीरव पटेल को गिरफ्तार किया है।पुलिस को मौके से 538 डेबिट कार्ड, 536 चेक बुक, 193 सिम कार्ड, चार स्वैपिंग मशीन, तीन लैपटॉप और मोबाइल फोन मिले।

पूछताछ में पता चला की ऑफिस के मालिक हर्षिल बाबूभाई जैन का क्रिकेट सट्टेबाजी और डब्बा ट्रेडिंग का नेटवर्क है और उसने जीतेन्द्र और जिगर की मदद से डमी बैंक खाते खुलवाता था फिर उसी दस्तावेज से सिम खरीदता था ,साथ साथ वह बैंक से चेक बुक और डेबिट कार्ड को बैंक से भेजने से पहले ही बैंक में जाकर कलेक्ट कर लेता था। बाद में डेविड मैसी,निकुंज कुणाल और मुंबई के गरुड़ नाम के युवकों को यह सिम कार्ड भेजता था जो ऑनलाइन बैंकिंग से सट्टेबाजी की अलग अलग साइटों पर लोग इन कर करोडो की लेनदेन करते थे जिसमे हर्षिल को प्रति लाख साढ़े तीन परसेंट कमीशन मिलता था।

इस सट्टा काण्ड में कई डमी बैंक खातों में अब तक दो हजार करोड़ रुपये का लेन-देन किया जा चुका ह। पुलिस ने हर्षिल समेत 20 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज कर करवाई शुरू कर दी है

Total Samachar आध्यात्मिक चेतना का जागरण

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वर्ष में नवरात्र के दो अवसर आध्यात्मिक चेतना को जागृत करते हैं. इस अवधि में की गई साधना प्रकृति के अनुरूप होती है.इसका वैज्ञानिक आधार है. नौ दिन अलग अलग शक्तियों का जागरण होता है. देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री है। नवदुर्गा के प्रथम दिन इनकी आराधना होती है। नव दुर्गा के प्रथम दिन की उपासना में साधक स्वयं को मूलाधार चक्रमें स्थिर करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारम्भ होता है।
देवी का मंत्र-

‘वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनींम्।

शैपुत्रत्री पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में अवतरित हुई थी। इसीलिए यह शैलपुत्री नाम से प्रतिष्ठित हुई। शैलपुत्री त्रिशूल व कमल से सुशोभित हैं। अपने पूर्वजन्म में यह प्रजापति दक्षपुत्री थी। इन्हें सती कहा गया। उनकी कथा बहुत प्रसिद्ध है। भगवान भोलेनाथ से इनका विवाह हुआ था। दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में भोलेनाथ की अवज्ञा हुई थी। उनको आमंत्रित नहीं किया गया था। सती के कई बार आग्रह को देखते हुए शिव जी ने अनिच्छा के साथ उनको यज्ञ को देखने की अनुमति दी थी। यहां उन्होंने शिव जी की अवहेलना व अपनी उपेक्षा का प्रत्यक्ष अनुभव किया। इससे उनको विषाद हुआ। उन्होंने अपने को यज्ञ की अग्नि में समर्पित कर दिया। शक्ति पीठों की स्थापना भी इसी प्रसंग से जुड़ी है। यही सती अगले जन्म में शैलपुत्री बनीं। इनका विवाह भी शिव जी से हुआ था।

हैमवती स्वरूप से इन्होंने देवताओं का गर्व भंजन किया था। जगदंबा दुर्गा का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के नाम से प्रतिष्ठित है। इन्होंने स्वयं तपस्या के माध्यम से प्राणिमात्र को सन्देश दिया। उन्होंने तपोबल के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। तपस्या के बल पर परमात्मा की कृपा को प्राप्त किया जा सकता है। सामान्य भक्त भी देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना से सर्वसिद्धि को प्राप्त कर सकता है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।कठोर तप से सच्चे साधक विचलित नहीं होते है। साधना में मंत्र जाप का विशेष महत्व होता है-

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

ब्रह्मचारिणी कठोर तप की प्रतीक है। ब्रह्म का भाव तपस्या से है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप,त्याग,वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली है। यह जप की माला व कमण्डल धारणी करती है। पूर्वजन्म में इन्होंने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। नारद जी की प्रेरणा से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या के कारण वह तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इनकी मनोकामना पूर्ण हुई। नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा माता की पूजा आराधना की जाती है। चंद्रघंटा की पूजा करने शुभता का विकास होता है। भक्त में शालीनता सौम्यता आत्मनिर्भरता और विनम्रता आदि का जागरण होता है। देवी का यह रूप अत्यंत शांत और सौम्य हैं। माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा और मंदिर के घंटे लगे रहने के कारण देवी का नाम चंद्रघंटा पड़ा है। इनका वाहन सिंह है। इनकी दस भुजाओं में खडग, तलवार ढाल,गदा,पास, त्रिशूल,चक्र और धनुष है। इन प्रतीकों के रहते हुए भी मां सदैव प्रसन्न व सकारात्मक भाव में रहती है। देवासुर संग्राम में असुर विजयी रहे थे। महिषासुर ने इंद्र के सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। उसने अपने को स्वर्ग का स्वामी घोषित किया था। अपनी व्यथा लेकर देवता ब्रह्मा,विष्णु और महेश के पास गए थे। ब्रह्मा,विष्णु और शिव जी के मुख से एक ऊर्जा उत्पन्न हुई। अन्य देवताओं के शरीर से निकली हुई उर्जा भी उसमें समाहित हो गई।

यह ऊर्जा दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक कन्या उत्पन्न हुई। शंकर भगवान ने देवी को अपना त्रिशूल भेट किया। भगवान विष्णु ने भी उनको चक्र प्रदान किया। इसी तरह से सभी देवता ने माता को अस्त्र शस्त्र देकर प्रदान किये। इंद्र ने भी अपना वज्र एवं ऐरावत हाथी माता को अर्पित किया। यही माता चन्द्रघण्टा थी। उन्होंने असुरों को पराजित कर देवताओं को पुनः स्वर्ग में स्थापित किया।

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता मंत्र से भगवती दुर्गा के तीसरे स्वरूप में चन्द्रघण्टा की उपासना की जाती है।

वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम्।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ्.

राज्य