डा.आशीष तिवारी, सीनियर फिजीशियन एवं मैनेजमेंट कंसल्टेंट, मुंबई

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत नही रहे । उनके जाने के बाद एक बार फिर आत्महत्या पर वृह्त बहस छिड़ गयी है । जीवन अनमोल है और हर एक साँस बेहद कीमती । हम इन साँसों को बनाये रखने के लिए हर पल संघर्ष करते रहते हैं तो ऐसा क्या हुआ होगा कि एक अभिनेता ने उस संघर्ष पर पूर्ण विराम लगा दिया ।

हर वर्ष दुनिया भर में लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं इसका अर्थ यह है कि हर 40 सेकंड में इस संसार में कोई न कोई व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है । हर आत्महत्या करने वाला व्यक्ति अंतिम प्रयास के पहले औसतन 20 बार आत्महत्या की कोशिशें करता है । दुनिया भर की आत्महत्याओं में 79% घटनाएँ निम्न या मध्यम आय वाले देशों में होती हैं ।

आत्महत्याओं में दो आयु वर्ग अधिक पाये जाते हैं या तो 70 वर्ष से अधिक आयु के लोग या 15-29 वर्ष के मध्य की आयु के लोग । ऐसा भी पाया गया है कि 15-29 वर्ष की आयु के लोगों की कुल मृत्यु में आत्महत्या दूसरा सबसे बड़ा कारण होता है । यद्यपि इसकी पैथोफिजियोलाॅजी अज्ञात है पर यह स्वभाव संबंधी ,आर्थिक समस्याओं या मनोवैज्ञानिक कारकों का समिश्रण हो सकता है ।

आत्महत्याओं का कोई एक अकेला कारण नही होता है बल्कि कई कारण होते हैं जिनमें प्रमुख रूप से मानसिक अवसाद, तनाव, चिंता, समस्या निदान में असफलता, शराब संबंधी विकार, आर्थिक विपन्नता, अकेलापन, सामाजिक भेदभाव, संबंध विच्छेद, लंबी अथवा असाध्य बीमारी, शारीरिक या मानसिक हिंसा या एब्यूज,परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु आदि जैसे कारण हो सकते हैं।

प्रायः ऐसा देखा गया है कि जिन लोगों ने पहले आत्महत्या का असफल प्रयास किया हो उनके फिर से आत्महत्या का प्रयास करने की सबसे अधिक संभावना होती है । मानसिक अवसाद या मनोदशा विकार वाले रोगियों में आत्महत्या की संभावनायें 20 गुना होती है इसके बाद मादक द्रव्यों का सेवन दूसरा सबसे बड़ा कारण होता है । एक विशेष अवलोकन यह भी है कि मीडिया में आत्महत्याओं से संबंधित सूचनाओं को अनवरत् दिखाने से और इस तरह की घटनाओं का नाटकीय प्रस्तुतिकरण करने से आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले लोगों की मनोवृत्ति को ट्रिगर मिलता है ।

आत्महत्या करने के प्रचलित तरीकों में फांसी लगाना , जहर खाना या खुद को गोली मार लेना आदि है । इसके अलावा पानी में डूब कर जान देना, उंची इमारत से कूद कर जान देना या आग लगा लेना अथवा नींद की अत्यधिक गोलियाँ खा लेना आदि होते हैं।

अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या आत्महत्याओं को रोका जा सकता है ? इसका सरल उत्तर है हाँ । पर इसके लिए सबसे पहले उन सिग्नल्स को पहचानना होगा जो आत्महत्या की प्रवृत्ति को मजबूत करते हैं । जैसे कि
*यदि कोई बार बार मरने या मारने की बातें कर रहा हो ।
*मरने के तमाम तरीकों की खोजबीन कर रहा हो
* अचानक अपनी जिन्दगी को बेमतलब बताने लगे
* अचानक अपनी जिन्दगी को बोझ बताने लगे
* अत्यधिक मदिरापान या ड्रग्स लेने लगे
* अचानक से तनाव या गुस्सा बढने लगे
* यदि वो बहुत कम या बहुत अधिक सोने लगे
* यदि वो दुनिया से कट कर अकेलेपन में रहने लगे ।
* बहुधा बदला लेने की बातें करने लगे

ये तमाम लक्षण एक प्रकार के संकेत होते हैं जो इंगित करते हैं कि अमुक व्यक्ति में आत्महत्या की प्रवृत्ति विकसित होती जा रही है और वो किसी भी समय आत्महत्या कर सकता है ।

इस तरह की प्रवृत्ति का उपचार संभव है । एक अच्छे एवं योग्य मनोचिकित्सक से मिलना चाहिए जो रोगी के लक्षणों का निदान कर सही उपचार कर सकता है । इस उपचार में मनोवैज्ञानिक परामर्श या वार्तालाप उपचार आदि से इस प्रवृत्ति के मूल कारणों का पता लगाकर उसका उपचार किया जा सकता है । कई दवायें भी उपलब्ध हैं जो बेहद कारगर होती हैं । इसके अतिरिक्त इस प्रवृत्ति के संग जुड़ी अन्य बीमारियों के उपचार से भी सहायता मिलती है । सबसे आवश्यक परिवार का सहारा होता है इसलिए चिकित्सक इस उपचार की प्रक्रिया में परिवार के लोगों को भी शामिल करते हैं । उन्हें बातचीत संबंधी और व्यवहार संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है।

बातचीत से सभी मसले हल हो सकते हैं । इसलिए उन सभी लोगों में से किसी एक या अधिक के संग अपने मन की बातों को शेयर करते रहना चाहिए जो भावनात्मक रूप से हमें अपने बेहद निकट महसूस होते हैं । जब इस तरह की कोई आकस्मिक आवश्यकता हो तो किसी सहायता केन्द्र से बात की जा सकती है ।

हमारी कोशिशें तो हर पल ऐसी होनी चाहिए कि हम अपने जीवन को कितना अधिक से अधिक खूबसूरती के संग संवार सकें और सजा सकें । हर जीवन को बचना जरूरी है और हम सबकी प्राथमिकता भी यही होनी चाहिए कि हम हर एक जीवन की यथासंभव रक्षा कर सकें । आत्महत्या को रोकने का हर प्रयास पूरी गंभीरता के संग करना होगा । हमारी कोशिशें जारी रहें सफलता जरूर मिलेगी ।

 

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