शरद दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार..

निरमला की निर्लज्जता के गांव में चर्चे थे..निरमला को कन्हई से प्रेम था.. प्रेम में शरीर समर्पित कर दिया.. एक बार के समर्पण ने उसकी हया को खत्म कर दिया.. कन्हई को हद दर्जे तक मोहब्बत करती थी.. उसी के जोर देने पर लाज शरम छोड़कर अरहर के खेतों में मिलने जाती.. ऐसा नहीं था कि हर बार उनके बीच वही होता था जिसके बारे में भूरे, परकास, बटेसर, सनातन आदि चठिया में चर्चा करते थे.. सच्चाई ये थी कि भूरे और परकास बहुत दिनों तक निरमला के पीछे पड़े रहे..

परकास तो एक दिन कुएं पर अकेले पानी भरते देख बाल्टी लैकर पानी भरने के बहाने पहुंच गया.. निरमला उसे देखकर जाने लगी.. परकास ने उसका हाथ पकड़ लिया.. ऊई कलुआ कन्हाई केरे पीछे जान दिये हौ..हमरिव वर देखि लिया करौ निरमलिया.. फिर क्या था.. परकास नजूमी होता और भविष्य देख पाता तो ऐसी हिमाकत नहीं करता.. निरमला चंडी बन गयी.. दहीच्वादा.. कुतुवा.. तुम्हार अम्मा नाय देखती का तुईका.. थूथून कूचि डारब.. जूता देखेव.. हरामी सार.. निरमला का पारा सातवें आसमान पर था..परकास आगे गालियां खाने के लिए नहीं रूका.. भाग निकला.. निरमला ने पहले गालियां दीं फिर बैठकर रोने लगी.. यू कन्हई हमार जान लैके छोड़ी.. बिहाव करै बद कहौ तौ कहत है कमावै लागी तब करब..पता नाय कब बाबा मरिहैं कब बैल बिकहैं.. . थोड़ी देर रोने और बड़बड़ाने के बाद वो सामान्य हुई और घर चली गयी.. कुआं गांव के छोर पर था..गजरू का हाता था लेकिन कोई वहां रहता नहीं था.. लिहाजा पूरा प्रकरण गोपनीय रह गया.. निरमला ने भी किसी से जिक्र नहीं किया..

उसी शाम को चठिया में परकास ने अरहर के खेत की काल्पनिक कहानी सच बताकर सुनायी.. काल्पनिक दृश्य तैयार किये.. खुद को जासूस साक्षी बताया.. कुएं की सच्ची घटना के बारे जिक्र तक न किया.. उसी दिन से निरमला चठिया में अधिकृत रूप से छिनार घोषित हो गयी..बटेसर और लड़कों की तरह तफरीबाज जरूर था लेकिन उसमें संवेदनाएं थीं.. परकास से आंखों देखा हाल सुनकर उसे अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर मन ही मन सोचा.. छिनारा कैइके जब निरमला कहियां शरम नाय आवत तौ हम काहे चिंता करी.. परकसवा ठीक कहत..ई ससुरी केरा अर्री के खेतन महियां जाये बिना खाना न पचै.. और पता नाय कीके कीके साथ सोवत होय.. छिनार..

दरअसल, बटेसर के खेतों को जाने वाली डगर निरमला के घर के सामने से होकर जाती थी.. निरमला के घर के पिछवाड़े फरेंदे का पेड़ था..मौसम पर पेड़ फरेंदे से लदा रहता और जमीन कूचे हुए फरेंदों के बैंगनी रंग से रंग जाती.. पास में नाद बनी थी.. खूटें पर गाय और उससे थोड़ी दूर उसका बछड़ा बंधा होता निरमला अक्सर उसी पेड़ के आसपास मड़राती चहकती दिख जाती थी..काम करने में चटक थी.. बटेसर को निरमला पसंद करती थी.. जब वो खेत जाने के लिए उसके घर के सामने से निकलता तो सामने पड़ने पर बोलती जरूर.. बटेसर! खेतै जाय रहे हव.. बटेसर हां में जवाब दे देता.. निरमला ये कहना नहीं भूलती.. काम काज मा मन लगावौ.. हरामी परकास और भूरे केरी संगत छोड़ि देव.. तुमका नाश कय देहैं.. कन्हई और निरमला के अरहर के खेत के किस्से तो उसने सुन रखे थे.. सुनकर और लोगों की तरह हंस देता था.. लेकिन यकीन नहीं होता था.. पर परकास ने जबसे फैब्रिकेटेड आंखों देखा हाल सुनाया तब से उसे निरमला से चिढ़ हो गयी थी..

सावन शुरू हुए दो दिन बीते थे.. सुबह उठते ही बटेसर ने ठान लिया.. सुभ दिन चलि रहे हैंय.. भोलेनाथ दया करौ.. आज पूनम तेने दिल केरी बात कहि द्आब.. इकरार की कार्ययोजना तैयार ही कर रहा कि पिताजी की आवाज सुनाई दी.. अरे बटेसर! ख्यात पर चले जावव औ तनु हरहा गोरू देखे रहौ.. नाय तौ सार सब धान चरि जैहैं.. बटेसर अनमने ढंग से तैयार हुआ.. खाया पीआ और चल दिया.. निरमला पेड़ के नीचे फरेंदे बीन रही थी.. बटेसर को देखकर आवाज लगाई.. बटेसर! बटेसर ने सुनकर अनसुना कर दिया.. छिनार से कोई संबंध नहीं रखना चाहता था..मन में बोला.. मरौ ससुन्धो..उधर निरमला इस तिरस्कार के भाव से भौंचक थी.. फिर से गुहारा.. बटेसर! ओ बटेसर!… बटेसर आज साफ संदेश दे देना चाहता था.. नो रिलेशन विद् कैरैक्टरलेस..बिना जवाब दिये चला गया.. शाम को थका हारा वापस आया.. खाना खाकर सो गया.. पूनम से इजहार-ए-मोहब्बत का कार्यक्रम टल गया.. लेकिन उसने ठान लिया.. कल जरूर कहब.. बप्पा कहिहैं कि ख्यात जाव.. तौ मना कई द्आब.. पूनम के ख्यालों में कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला.. सुबह उठा तो सुना अम्मा बप्पा से कुछ फुसफुसा रहीं थी.. बटेसर ने पूछा.. का है अम्मा? अम्मा बोली.. कुछ नाय.. बटेसर जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ.. पिता जी तरफ देखकर पूछा.. का बात हैय?..पिताजी ने नहीं छिपाया.. निरमला बिरवा प फंसरी (फांसी) लगाय लिहिस..इतना सुनते ही बटेसर की अम्मा चीख पड़ी.. लगाय लिहिस कि बाप सार मारि क लटकाय दिहिस.. पुतानी केरी अम्मा बताय रही रहय, राति क खूब झगड़ा भवा.. निरमला केरा बेहकरा आये रहैंय.. उनके जावेक बाद झगड़ा होय लाग.. निरमला करैया नाय रहय.. पुतानी क अम्मा कहती रहंय कि वह कहि दिहिस कि कन्हई तेने बिहाव करब.. खूब मारी गयी.. भोरारे टुर्री निकरे तौ देखिन फेरेंदा पर लटकी हय.. चिल्लावै लाग.. तौ सब जन जाने.. पिताजी ने आगे जानकारी बढ़ाई.. निरमला केरा बाप सुबहे थाने पर गवा रहैय.. दरोगा कहिंया रूपया दै आवा.. वो कहिसि जाय क जल्दी तेने फूंक देव.. तौ लौट क चटकई सब जन ख्यात पर फूंकि आये.. पिताजी और अम्मा बोलते जा रहे थे.. हकीकत ये थी कि बटेसर जड़ हो गया था उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था..कानों में छिनार की हैरत भरी गुहार पहुंच रही थी.. बटेसर! … ओ बटेसर!…

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