तीन हफ्तोॆं के सर्वों में – 90 फीसदी मजदूर हुए बेरोजगार, 94 फीसदी गरीब सरकारी योजनाओं से महरूम।बस 17 फीसदी मजदूरों के पास हैं बैंक एकाउटं...

 

“का गुरू का हाल हौव… अरे का हाल पुछत हउवा गुरू… इ कोरोनवा सब के लील लेहलस….” इस तरह बातें इन दिनों बनारस में हर चौराहे, नुक्कड़, गली, मुहल्ले पर हो रही हैं। वजह तो आपसब जानते ही हैं कि किलर कोरोना ने इण्डीयां में कुछ इस कदर अपना पैर पसारना शुरू कर दिया हैं कि उसके चपेट में क्या अमिर क्या गरीब सब को एक साथ ला खड़ा कर दिया। लेकिन इन सब के बावजुद किलर कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा गरीबों को हो रही हैं।

 

“पूरे देश में जन साहन नाम की एक एनजीओ ने कनस्ट्रक्सन लाईन के 3196 मजदूरों पर एक सर्वें करवाया हैं। जिससे पता चला कि 94% मजदूरों के पास सरकार के योजनाओं की लाभ उठाने के लिये जरूरी कागजात ही नही हैं।”

देश भर में कोरोना वायरस को रोकने के लिये किये गये लाकडाउन खासतौर से गरीबों और मजदूरों के लिये विनाशकारी साबित हो रहा हैं। हाल में ही एक NGO द्वारा कराये गये सर्वे के मुताबिक देश में अब तक 90 फीसदी मजदूर अपनी कमाई के साधन को खो चुके हैं। इससे भी ज्यादा खराब बात इस सर्वें मे सामने आई हैं कि केन्द्र सरकार के ने जो मुआवजे का ऐलान किया हैं उस मुआवजे को पाने के लिये अधिकाशं मजदूरो के पास जरूरी कागजात ही नही हैं।

दरसल पूरे देश में कनस्ट्रक्सन लाईन से जुड़े 3196 मजदूरों पर करायें गये सर्वें से पता चला हैं कि 94 फिसदी मजदूरों के पास सरकार का मुआवजा पाने के लिये जरूरी कागजात नही हैं।

सर्वे के मुताबिक देश में ऐसे 5.1 करोड़ हो सकते हैं जो कि मुआवजा पाने के लिये अयोग्य साबित हो सकते हैं। सर्वें ये भी कहता हैं कि आंकड़ों के मुताबिक देश में 5.5 करोड़ मजदूर कनस्ट्रक्सन के क्षेत्र में काम करते हैँ।

सर्वें में 17 फीसदी ऐसे मजदूर शामिल हैं जिनके पास कोई भी बैंक खाता है ही नही। जिसकी वजह से सरकार के आर्थिक सहायता से वचिंत हो गये हैं। जन सहन की सलाह हैं कि उन्हे आधार, पहचान पत्र,  ग्राम पंचायत और डाक घरों का उपयोग करके भुगतान किया जा सके।  सर्वें के मुताबिक मजदूरों को आर्थिक राहत न मिलने की एक बड़ी समस्या “जानकारी का अभाव” हैं।  68 फीसदी मजदूरों का कहना हैं उन्हे पता ही नही हैं कि सरकार के द्वारा दी जाने वाली सहायता तक कैसे पहुचा जा सकता हैं। जबकि 37 फीसदी मजदूरों ने कहा कि उन्हे जानकारी ही नही है कि सरकार की मौजुदा योजनाओं का लाभ कैसे उठाया जा सकता हैं।

सर्वें के मुताबिक 42 परसेन्ट मजदूरों ने बताया कि उनके पास एक दिन का राशन भी नही हैं। जबकि 33 फीसदी मजदूरों का कहना हैं कि उनके पास राशन खरिदने के लिये पैसा ही नही हैं और 14 परसेन्ट मजदूरो की माने तो उनके पास राशन कार्ड ही नही हैं। 12 फीसदी मजदूरो ने कहा कि वो राशन ले नही सके क्यों कि मौजुदा वक्त वो वहां मौजुद नही थे।

ऐसे में सवाल बस एक हैं कि गलत कौन….. सरकार हमारी…. सिस्टम हमारा… प्रशासन….. या फिर पुरानी सरकारें… गलत कोई भी हो फिलहाल इस मुसिबत के घड़ी में अगर कोई मर रहा हैं तो वो हैं केवल और केवल गरीब और मेहनतकश मजदूर…..

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