डॉ ध्रुव कुमार त्रिपाठी, एशोसिएट प्रोफेसर.

मैं भारत हूँ

मैं भारत हूँ। इस शीर्षक से हम आपसे कुछ जानना चाहते हैं। मुझे पुनः सोने की चिड़िया बनना है। अब हमें विकास की दिशा खुद तय करनी होगी। अभी तक विकाश शहर से गांव की ओर होता रहा हैं। लेकिन अब जरूरत हैं कि विकाश गांव से शहर की ओर किया जाये क्यों कि इस कोरोना त्रासदी में भारत को गांव ने ही बचाया हैं। लोग अपने गांव आन चाहत हैं।  पश्चिमी मॉडल को तो आपने देख लिया पश्चिमी सिद्धांत में मानव पोषणीय दिखाई नहीं पड़ता।  आपको भी कोई मानवीय मूल्य नहीं दिखा होगा। एक छोटे से वायरस ने आज पूरी धरती को हिला कर रख दिया। विकसित कहे जाने वाले राष्ट्र स्तब्ध होकर देखते रह गए। उन सभी राष्ट्रों के पास अकूत दौलत थी। बम बारूद की कोई कमी नहीं थी। वैज्ञानिकता के शिखर पर थे। इतना ही नहीं पूरे ब्रह्मांड को अपने वश में करने का दंभ रोज भरा करते थे। लेकिन कुछ काम नहीं आया।ताश के पत्तों की तरह उनकी शानों शौकत आधुनिकता के पैमाने बिखर गये। अपनों को मरते हुए देखते रह गए। आप लोग समझ रहे हैं हम क्या कहना चाहते हैं। क्या ऐसा ही भारत बनाने का मन है?

अमेरिका, रूस, चीन जैसा बन कर भी आप क्या प्राप्त कर लेंगे। हमारे समझ में नहीं आ रहा है कि हम इस देश को कहां ले जाना चाहते हैं।  लेकिन हम भारत हैं दुनिया में मेरी धमक आज जरूर फीकी पड़ गई है लेकिन हमारा इतिहास गौरवमई रहा है। हम सोने की चिड़िया कहलाते थे और हम आज फिर से सोने की चिड़िया बनना चाहते हैं कैसे बनेंगे आपको तय करना है? आप लोग चिंतन करो और विकास के नए आयाम जतन करो। आपको यह ध्यान रखना होगा विकास और विनाश में फर्क होता है। आज जिस तरह अमेरिका रूस चीन फ्रांस इजराइल एक दूसरे को धमकाते हैं। एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हैं। सिद्धांत विहीन तर्कों का सहारा लेते हैं। धन के लालच में अपना जमीर बेच देने वाले यह देश गली के गुंडे और उन मवाली शरीके लगते हैंष। इन देशों से तो वह गुंडे अच्छे हैं, जो दोस्त वह दुश्मन में फर्क रखते हैं।

हमें आज भी अपना इतिहास याद है शिक्षा के मंदिर के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया में सबसे अलग वह बेहतरीन था। विश्व के सभी धर्मों का सम्मान हम अपने यहां करते थे। धार्मिक स्वतंत्रता तो भारत का आभूषण था। जिसका उदाहरण दुनिया के हर देश दिया करते थे। हमारे देश में सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम धर्म, बहाई धर्म, सिख धर्म जैसे अनेकों लोग अपनी संस्कृति के साथ रहते थे। हमारे योग की विद्या पतंजलि आज भी दुनिया में अपनी अलग साख रखती है। हमारी भारतीय संस्कृति विलक्षण है। हमारी संस्कृति को जो भी बदलने आया, इस सांस्कृतिक विचारधारा में विलीन हो गया या अपनी पहचान खो बैठा। इसलिए आप लोगों को बताने की जरूरत नहीं है। मुझे सिर्फ आपके आंख से पर्दा हटाना है। भारत दुनिया को रास्ता दिखाने वाला आज खुद दूसरों से रास्ता पूछ रहा है। आप अपनी ताकत पर भरोसा नहीं करते हैं। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि आगे बढ़ो पूरी दुनिया को रास्ता आप दिखा सकते हैं। सिर्फ अपनी संस्कृत के अनुसार अपने ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रित करो। अपनी जरूरतों को खुद तय करो। अपने व्यापार के सिद्धांत तय करना आपकी जिम्मेदारी है।

प्राचीन काल में भारत के व्यापार से विश्व का कोई देश अछूता नहीं था। 4 महीने के संपूर्ण लाभ डॉन का परिणाम आपने देखा पूरे विश्व में व्यापार लगभग ठप पड़ चुका था। लोग परेशान थे। करोड़ों नौकरियां चली गई थी। स्टॉक एक्सचेंज जमीन पर औधे मुह पढ़ा था। सिर्फ कुछ दवा कंपनियां व्यापार कर रही थी। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी।

 

लेकिन आपने देखा होगा कि भारत का भरण पोषण करने वाला अन्नदाता ताल ठोक कर खड़ा था। देश में अनाज का भंडार भरा था।  कहीं कोई कमी नहीं थी। देश में कोई भूखा नहीं मर सकता था। लेकिन लालच व धन के लोभी लोग धन अर्जन का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे थे। इसके कारण आप लोग अनाज का सलीके से वितरण नहीं कर पाए। लोगों तक अनाज या भोजन पहुंचाने की व्यवस्था दुरुस्त नहीं होने के कारण कुछ लोग जरूर भूख प्यास से मरे होंगे। इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन इसमें किसान कहीं दोषी नहीं है। दोष सिर्फ व्यवस्था एवं व्यवस्थापक का है। सरकार की सभी नीतियां अच्छी होती हैं लेकिन उसे लागू करने वाले व्यवस्थापक की दृष इच्छा शक्ति की कमी के कारण वो घरातल पर नही पहुच पाती। इसलिए हम बार-बार कह रहे हैं की स्वयं को पहचानो। अपनों पर भरोसा रखो। अपनी सभ्यताओं का पुनर्निर्माण करो। विश्व गुरु आप सब पहले से सी हो विश्व को ठीक से बताओ। एक काम जो हमारे लिए यानी भारत के लिए सभी भारतीयों को करना है वह छलावे, दिखावे एवं चलताऊ व्यवस्था को तत्काल बंद कर टीकाऊ व्यवस्था अपनाने की आवश्यकता है।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि तीन प्रमुख क्षेत्र जिसमें गंभीरता से कार्य होना चाहिए। उसमें कहीं भी व्यवसायिक प्रवृत्ति का रंच मात्र भी अंश ना हो। शिक्षा एक भाषा में या जनसामान्य की समझ में आने वाली भाषा में दी जानी चाहिए।  शिक्षक सबसे ताकतवर, तीक्ष्ण बुद्धि एवं मेधा संपन्न होना चाहिए। शिक्षा व्यवस्था में ठेकेदारी, अतिथि अध्यापक, शिक्षामित्र, अनुदेशक, सेल्फ फाइनेंस जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।  आप जानते हैं कि शिक्षा समाज की आत्मा है। आत्मा मर जाएगी तो शरीर सिर्फ जीव के रूप में एक पुतला की तरह रह जाएगा। दूसरा स्वास्थ्य बहुत जरूरी विषय है। मेरे देश में रहने वाले हर नागरिक स्वस्थ हो ऐसा मैं चाहता हूं। लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यवसायीकरण ने हमें निराश किया है। हमारा दिल तब फट जाता है जब हम यह सुनते हैं की दवा के अभाव में किसी भारतीय की जान चली गई या फिर दवा में मिलावट के कारण किसी व्यक्ति की जान चली गई। हम हमेशा इस बात की वकालत करते हैं कि स्वास्थ्य सेवा राज्य का विषय होना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का व्यवसायीकरण उचित नहीं है। आप जानते हैं कि हमारी प्राचीन पद्धति स्वास्थ्य की बेहतरीन थी। लेकिन उसे हम डिवेलप नहीं किए। उधार की विधियों से अपने देश के लोगो का जीवन नहीं बचाया जा सकता। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हम यह मानते हैं हर व्यक्ति को स्वस्थ रखना, उसे इलाज मिलना, यह देश की जिम्मेदारी होनी चाहिए।

एक और बात जो हमेशा हमें परेशान करती हैं। कदाचित आपको भी करती होगी। लेकिन आप जाहिर नहीं करते। हम भारत हैं। बेबाकी से अपनी बात कहने का हम ताकत रखते है।  भारत की न्याय व्यवस्था के संदर्भ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने कहा था कि भारतीयों को न्याय व्यवस्था में जटिलता को कम करना चाहिए। गरीब से गरीब को न्याय मिले, इसकी समुचित व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी ने भारत के संविधान का निर्माण किया और बड़े ध्यान से इस बात का प्रयास किया कि भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के हितों का संरक्षण हो सके।

लेकिन अभी एक देश एक कानून की आवश्यकता है। इस को सख्ती से लागू करना चाहिए जिसे आप कॉमन सिविल कोड कहते हैं। जब तक सभी व्यक्तियों को समान संवैधानिक समादर नहीं मिल जाता तब तक वास्तविक न्याय संभव नहीं है। आप जानते हैं की 30% आबादी शहरों में रहती है और 70% आबादी गांव में रहती है। लोकतांत्रिक अवधारणा के अनुसार 70% विकास गांव में होना चाहिए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं आज भी गांव तमाम बुनियादी सुविधाओं से अछूते हैं।  इधर कुछ वर्षों में जरूर सड़कें बनी, विकास हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन 30% आबादी को जितना विकास मिला है, यह न्याय संगत नहीं है या आप कह सकते हैं कि जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी का ख्याल नहीं रखा गया।

एक बात और आपके ध्यान में हम लाना चाहते हैं। आधी आबादी के अधिकार पर चर्चा होनी चाहिए आप जानते हैं कि महिलाओं को वैदिक युग में पुरुषों के साथ यज्ञ आदि में बैठकर मंत्रोच्चारण करने का अधिकार प्राप्त था। लेकिन क्या कारण है कि आज महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित रखा गया स्वतंत्रता के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी ने पंचायत में महिलाओं को अधिकार दिया था। लेकिन आज भी संसद के दोनों सदनों में महिलाओं को यथोचित हिस्सेदारी नहीं मिली। हम लगातार सभ्यता की सीढ़ी चढ़ते जा रहे हैं, उत्तरोत्तर विकास हो रहा है। ऐसे में महिलाओं के अधिकार पर पुनः विचार होना चाहिए।

आज आप लोग देख रहे होंगे की राजनीति में परिवारवाद बहुत तेजी से अपनी जगह बना रहा है। पहले इक्के दुक्के परिवार हुआ करते थे। लेकिन आज हर सांसद का बेटा विधायक या उसकी पत्नी या पुत्र वधू या उनके परिवार के अन्य सदस्य राजनीति में आते हैं। राजनीति सेवा का क्षेत्र है। यहां आने वाला हर व्यक्ति सेवक के रूप में आता है। शासक बन जाता है। यह चलन आगे चलकर व्यवसाय के रूप में बदल जाती है। आज वर्तमान समय में हर नेता व्यवसायीक गतिविधियों में लिप्त है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि यह गलत है या नेता को व्यवसाय नहीं करना चाहिए। लेकिन इस राजनीति की आड़ में वह अपने गलत व्यवसाय को आगे बढ़ाता है। आज एक विधायक सांसद एक से अधिक पेंशन लेता है। 30 वर्ष नौकरी करने के बाद एक कर्मचारी को बाजार आधारित पेंशन के हवाले छोड़ दिया जाता है। ऐसा अन्याय देश के लिए अच्छा नहीं है। सच कहूं तो मेरे मन में और भी बहुत सवाल है। लेकिन समय का बंधन है आज बस इतना ही आगे हम फिर मिलेंगे।

जय हिंद जय भारत

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