लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से….
आप कौन होते हैं मेरी सेहत का हाल पूछने वाले। अरे भाई आपका शुभेच्छु हूं इस कारण पूछ दिया। इधर काफी दिन हो गया था आपको देखने से लगा कि कुछ तबीयत नासाज है इस कारण सेहत के बारे में पूछ दिया। मेरी सलाह यही थी कि आप किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएं। यह सामान्य शिष्टाचार है। इस बात को पाज़िटिव लें।
इतना सुनना कि मित्र हत्थे से बाहर। आप लगातार सीमा लांघ रहे हैं तो आप हमारे शुभेच्छु हैं और मुझे पाज़िटिव बता रहे हैं। ऐसा तो दुश्मन भी नहीं करता। मैं समझ चुका था ये कोरोना पाज़िटिव समझ बैठे हैं। इसके साथ ही मैं सिर धुन रहा था कि एक बार फिर वही गलती किया बिना मांगे सलाह दे दी है तो अब भुगतना ही होगा। मैं कुछ भी कहता वह एक ही रट लगाए थे।
अब खुलकर बोले, आजकल किसी शुभेच्छु की आवश्यकता नहीं हमारा प्रधानमंत्री ही काफी है जबानी खर्चा आप भी कर रहे तो इससे बढ़िया तो वही है हर कुछ दिन पर गमछा मास्क लगाकर आ जा रहा है हालचाल ले लेता है। किसी किसी से फोन कर बात भी कर लेता है।
एक दिन हम से भी बात करेंगे। उन्होंने कहा तो हम सोशल और फिजिकल दोनों डिस्टेंस बनाकर चल रहे हैं। मैंने कहा, अच्छा अब समझ में आया कि आप इतना दूरी क्यों रख रहे हैं? बोले आप जो समझो जब वह ध्यान इतना दे रहे तो अपना भी फर्ज बनता है। वह अपने मन की बात बता रहे हैं तो सोचिए वह शख्स कितने बड़े दिल वाला है। वह हमारे दिल में विशेष स्थान बना चुके हैं। पूछ दिया पाज़िटिव या निगेटिव। इतना सुनते फायर। फिर वही ढाक के तीन पात।
मैं मुस्कुरा कर उठते हुए कहा सब ठीक है लेकिन अपने मन की भी कभी कभार सुन लिया करिए और अपने को डाक्टर को दिखा लीजिएगा। यह राजनीति नहीं व्यक्तिगत बात है और छोटे भाई की बात मान लीजिएगा। बिना मांगे राय दिया इसके लिए क्षमा के साथ जा रहा हूं। आपको आवश्यकता जब भी हो आप मुझे बिना संकोच याद करिएगा। वह गमच्छा वाले जब फुर्सत में होंगे तो आप से बात करेंगे या प्रोटोकॉल बनेगा तब आएंगे मैं कुछ मिनटों में आऊंगा क्योंकि मैं आपका शुभेच्छु और मित्र हूं।
राजनीति और व्यक्तिगत जीवन का घालमेल कर अपने संबंधों की आहुति मत दीजिए। आज ये मन की बात कर रहे कल कोई और करेगा। यह अनवरत प्रक्रिया है। इसे दिल और मन पर हाबी मत होने दीजिए। वह भगवान नहीं कि हर व्यक्ति की पीड़ा जान वहीं से दूर कर दें। वह संवाद कर रहे वही बड़ी बात है। यह आप ही नहीं बहुतेरे लोगों के मन में है। 
मेरे मित्र ठहाका लगाकर हंस पड़े। कहा फिलहाल फिट हूं लेकिन कल अवश्य अपनी जांच कराऊंगा। अगले दिन जांच कराए तो शुगर निकला। मुझे फोन किए तुम इतना कुरेदते नहीं तो मैं बिल्कुल चेक कराने नहीं जाता। सही में मित्र वही है जो आलोचना की परवाह किए बिना सही सलाह दें। मैंने भी कहा, वैसे मेरी भी गलती है बिना मांगे सलाह कभी नहीं देना चाहि

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