गुजरात से सत्यम ठाकुर की रिपोर्ट……

गुजरात। इस कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की हालात बहुत ही दयनीय हैं। लगातार एक के बाद एक देश के हर कोने से प्रवासी मजदूरों दर्दनाक खबरें सामने आ रही हैं। प्रवासी मजदूरों की एक हृदय विदारक घटना गुजरात के भरूच से आ रही हैं। एक प्रवासी मजदूर निकला तो था अपने वतन जाने के लिये लेकिन रास्ते में ही उसने अपना रास्ता बदल लिया और वो उस रास्ते की पर चला गया जहां से अब उसकी केवल यादें ही वापस आ सकती हैं।

इस फोटो में दिख रहा ये प्रवासी मजदूर राजू साहनी हैं। राजू साहनी मूलत उत्तर प्रदेश का रहने वाला हैं। कुछ महिने पहले राजू साहनी रोजी रोटी की तलाश में वो गुजरात आया था। लाकडउन होने के बाद राजू गुजरात में ही रूका रहा। लेकिन जब राजू को पैसे की कमी होने लगी, भूख सताने लगी, सब्र का बांध टूटने लगा तो राजू अपनी साईकिल से कई सौ किलो मीटर दूर अपने वतन की ओर निकल पड़ा।

लेकिन राजू जैसे ही गुजरात के करचन पहुचा वैसे ही कई दिनों से भूखे प्यासे राजू ने अपने वतन के बजाय इस दुनिया से किसी और दुनिया की ओर चला गया। राजू अब हम सब के बीच में नही हैं। राजू के घर वालों की आखें अभी भी राजू का इन्तजार कर रही हैं। मदर्स डे पर राजू की मां की लरसती आखें राजू को तलाश रही हैं। राजू के मासूम बच्चे गांव के घर की चौखट पर अपने पााप का इन्तजार कर रही हैं। लेकिन अब इन बच्चों की इन्तजार अब कभी खत्म नही होगा। क्यों कि राजू अब इस दुनिया को अलविदा जो कह दिया हैं।

राजू की कहानी यही नही खत्म होती। कोरोना ने कुछ इस तरह से राजू पर आपनी काली छाया डाली कि उसे मरने के बाद 4 कन्धे तक नसीब नही हुए। पैसे की कमी से उसके वतन और परिवार का कोई भी सदस्य उसकी अन्तिम यात्रा मेंं शामिल नही सका। राजू का अन्त तो कुछ इस तरह हुआ कि राजू की अन्तिम यात्रा तो यहां के प्रशासन के लोगों ने मिलकर पूरी करवा दी। लेकिन उस यात्रा का जवाब कौन देगा जिस यात्रा के लिये राजू निकला था। साथ ही उन लाखों प्रवासी मजदूरों की यात्रा जो अनवरत चल रही हैं। भूखें, प्यासे, उसमें कौन राजू साहनी बन जायेगा उसे कोई नही जानता।

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