सुप्रीम कोर्ट ने कहा- फीस नहीं लेंगे तो पढ़ाएंगे कैसे

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस के कारण चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन को देखते हुए कॉलेजों की सेमेस्टर फीस माफ करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए कहा कि कॉलेज फीस नहीं लेंगे तो चलेंगे कैसे। यह आदेश न्यायमूर्ति अशोक भूषण, संजय किशन कौल व बीआर गवई की पीठ ने जस्टिस फॉर राइट्स फाउंडेशन व अन्य की याचिका खारिज करते हुए गत शुक्रवार को दिया।

याचिकाकर्ता संगठन के अध्यक्ष सत्यम सिंह ने खुद बहस करते हुए कोर्ट से आग्रह किया था कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को देखते हुए कोर्ट सभी निजी और सरकारी कॉलेजों के छात्रों की सेमेस्टर फीस माफ कर दे। फीस न दे पाने पर छात्रों के नाम न काटे जाएं। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि कोर्ट कुछ समय के लिए फीस देने से छूट का आदेश जारी करे। लेकिन पीठ याचिका पर सहमत नहीं दिखी। पीठ ने कहा, अगर कॉलेज फीस नहीं लेंगे तो काम कैसे करेंगे। उन्हें अपने स्टाफ को वेतन देना पड़ता है।

अदालत का रुख देखते हुए सत्यम ने आग्रह किया कि कोर्ट छात्रों और कॉलेज के बीच कुछ संतुलन बनाते हुए आदेश पारित करे। सिर्फ ट्यूशन फीस ही ली जाए, लेकिन कोर्ट इसके लिए भी राजी नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि बेहतर हो कि याचिकाकर्ता इस संबंध में संबंधित विश्वविद्यालय से संपर्क करे। इसके बाद कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल रिट याचिका को खारिज कर दिया।

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन की अवधि में बैंक से लिए गए कर्ज पर ब्याज नहीं वसूलने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार ने अधिसूचना जारी कर कर्ज लेने वालों को तीन महीने तक किस्त अदा करने से छूट दी है, लेकिन इस अवधि में ब्याज अदा करने से छूट नहीं दी गई है, इसलिए किस्त के साथ ही तीन महीने का ब्याज लेने पर भी रोक लगाई जाए। शीर्ष कोर्ट ने याचिका पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से केंद्र और आरबीआइ से निर्देश लेकर सूचित करने को कहा था।

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