अनिल सिंह वरिष्ठ पत्रकार। दैनिक जागरण का ब्लाग

लखनऊ। निजी लैैब में कोरोनावायरस की 4500 रुपयेे की जांच पर आखिर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी। मतलब केंद्र सरकार के फरमान में सिर्फ इतना संशोधन के साथ कि जो आयुष्मान योजना में है या अति गरीब हैं उन्हें छोड़ सभी को 4500 रुपये ही देना होगा।

हम देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं क्योंकि उसका फैसला अपनी जगह पर दुरुस्त है। सरकार ने जो तथ्य और तर्क दिए होंगे उस पर फैसला दिया। ऐसे में कोर्ट से तो नहीं लेकिन सरकार से सवाल करना तो बनता है।


यह सवाल है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में कितने लोगों की आय इस टेस्ट का खर्च आसानी से वहन कर सकती है। जिसके घर में एक से अधिक सदस्यों को टेस्ट कराने की नौबत आई उन्हें तो टेस्ट के लिए बैंक से लोन लेने तक की नौबत आ जाएगी। कितने ही लोग तो बैंक के पैमाने पर लोन लायक भी नहीं होंगे। उदाहरण के लिए

न्यूनतम पांच सदस्यों वाले परिवार के मुखिया की चालीस हजार भी मासिक आमदनी है तो भी वह सभी सदस्यों का एक साथ टेस्ट नहीं करा पाएगा। वह न तो अत्यंत गरीब है और न ही आयुष्मान योजना का लाभार्थी। सरकार ने 4500 का ख़र्च तय करते समय में ऐसे बड़े मध्यमवर्गीय समाज के बारे में क्या सोचा?

दूसरा अहम सवाल इस महामारी कोविद 19 कोरोनावायरस की जांच की दर तय करने वाली नियामक संस्था आइसीएमआर ने यदि 4500 रुपये निजी क्षेत्र में जांच के लिए तय किया तो उसे पारदर्शी रखते हुए उसके किट की वास्तविक दर और विशेषज्ञ की फीस आदि का ब्योरा जारी करना चाहिए। जिसे भुगतान करना है उसे मालूम होना चाहिए।

क्योंकि यह दर सरकार द्वारा अपने नागरिकों के लिए तय की जा रही है। यह कोई टैक्स नहीं है कि आप घोषित किए और हम भुगतान करने लगे। कायदे से तो टैक्स भी तार्किक आधार देते हुए घोषित किया जाना चाहिए जो नहीं होता।

लोगों का कहना है कि यह जांच 4500 में ही क्यों 6000 में क्यों नहीं या 450 में क्यों नहीं? जब सिटी स्कैन जैसी भारी भरकम जांच 4500 में हो जाती है। तो इसकी जांच इतनी महंगी क्यों?

 

पीएम संबोधन में बता भी रहे थे कि प्रारंभ में सिर्फ एक लैब थी आज सौ से अधिक हो गई है। ऐसे में सवाल उठता है जांच किट भी देश में उपलब्ध है और लैब इसे करने में सक्षम भी है तो इसे आम आदमी से दूर रखने की कोशिश क्यो हो रही है? संक्रमण वाली महामारी है एक व्यक्ति के प्रभावित होते पूरा परिवार घेरे में आता है और सबकी जांच अनिवार्य हो जाती है ऐसे में सरकार को निजी क्षेत्र में जांच दर को या तो मुफ्त या न्यूनतम दर पांच सौ रुपये तक रखना चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो बहुसंख्य लोग घरों में ही परिवार समेत संक्रमण से जूझने को बाध्य होंगे।

केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा। समय रहते नहीं सुधार करने पर अप्रिय घटना से इंकार नहीं किया जा सकता।

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