Total Samachar विश्व ऑटिज्म डे या आत्म केंद्रित जागरूकता दिवस

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डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

पृथ्वी पर हर प्राणी की तरह मनुष्य ने भी एक जंतु जगत के सदस्य के रूप में ही अपने जीवन को आरंभ किया था लेकिन जटिल मस्तिष्क द्वारा विश्लेषण करने की क्षमता के कारण 1 दिन मानव पशु जगत से इतना दिन हो गया कि वह सांस्कृतिक मानव कहलाने लगा लेकिन प्रकृति से जितना वह दूर जाता गया उतना ही प्रकृति के संक्रमण से उत्पन्न स्थिति से भी प्रभावित दिखाई देने लगा और यही कारण है कि मानव ने आज यह तो सुनिश्चित कर लिया है कि पशु जगत में किस पशु की आयु कितनी होती है और ज्यादातर वह पशु स्वस्थ पैदा होकर अपनी उस आयु को जी भी लेता है लेकिन मानव के संदर्भ में यह बात सत्य नहीं साबित होती है क्योंकि सांस्कृतिक मानव ने अपनी औसत आयु को समय के साथ बहुत बड़ा लिया आज भारत जैसे देश में भी 70 साल से ज्यादा आवश्यक आयु हो गई है लेकिन उसी के साथ यह भी सत्य है कि संस्कृति के नए खोजों ने मानव को इतना संक्रमित कर दिया है कि जन्म के समय से ही मानव जीवन स्वास्थ्य के एक संघर्ष से जूझने लगा है

वैसे तो 1948 में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र का पहला अनुच्छेद इस बात का आवरण अधिकार के रूप में हर मनुष्य को दे देता है कि वह स्वतंत्र है और समान रूप से उसे जन्म लेने का अधिकार है लेकिन इसे समझने के लिए प्रत्येक व्यक्ति में विधिक रुप से एक ऐसी समानता का बोध होना चाहिए जो प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से जीने का अवसर प्रदान करें और इसी क्रम में 2 अप्रैल को प्रतिवर्ष विश्व ऑटिज्म दिवस या फिर आत्म केंद्रित जागरूकता दिवस मनाया जाता है ऐसा किसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह एक ऐसी पैदा होने वाले बच्चों की बीमारी है जो 2 साल से ऊपर की आयु होने के बाद प्रदर्शित होती है और इसमें बच्चा ज्यादातर आत्म केंद्रित होता है वह बाहरी दुनिया के साथ ना तू इतना घुल मिल पाता है ना ही उनके साथ बहुत ज्यादा सामान्य व्यवहार देता है

1 नवंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व स्तर पर इस तरह के बच्चों के लिए जागरूकता चलाने की बात को स्वीकार किया गया जो अपने कार्य रूप में 18 दिसंबर 2007 को आप आया तभी से हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म दिवस मनाया जाता है इसे नीले रंग से संदर्भित किया गया है और आज के दिन बड़ी इमारतों को नीले रंग से या नीली रोशनी से सजाया जाता है ताकि इस बात का प्रदर्शन हो सके कि ऐसे बच्चों के लिए आसमान उनकी सीमाएं हैं वर्ष 2023 में इसीलिए इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए थीम रखी गई है लाइट इट अप ब्लू बहुत समय पहले एक पिक्चर आई थी तारे जमीन पर जिसमें एक बच्चे को दिखाया गया था जो दिखाई तो सामान्य देता था लेकिन जब वह किसी पढ़ाई लिखाई की बात आती थी या किसी शब्द को अक्षर को देखता था तो उसके दिमाग में वह अक्षर अजीब अजीब तरह से दिखाई देते थे जिसके कारण वह उनको समझ नहीं पाता था उनको उस तरह से प्रस्तुत नहीं कर पाता था उनका उत्तर नहीं दे पाता था यही मुख्य रूप से ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों की समस्या होती है वह अपनी बात को स्पष्ट रूप से कहने में सक्षम नहीं होते हैं वह अक्षरों को नहीं पहचान पाते हैं वह वाक्यों को नहीं पहचान पाते हैं जब भी अपनी कोई बात करते हैं तो उसमें अटक कर बात करते हैं हकला कर बात करते हैं उनकी बौद्धिक क्षमता थोड़ी कम होती है लेकिन आज तक इस पर मेडिकल साइंस के माध्यम से कोई विस्तृत स्पष्ट तथ्य नहीं रखे जा सके हैं कि ऑटिज्म जैसा रोग बच्चों में क्यों होता है

विश्व स्तर पर ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों के अध्ययन से जो सबसे बड़ी बात सामने आई है वह यह आई है कि प्रदूषण एक ऐसी समस्या है खासतौर से वायु प्रदूषण जिसके कारण गर्भावस्था में बच्चों पर प्रभाव पड़ता है और उसमें से बहुत से बच्चे ऑटिज्म से प्रभावित हो जाते हैं यही नहीं गर्भावस्था के दौरान ही उनके मस्तिष्क के जिनमें अनियमितता पैदा हो जाती है जो आर्टिज्म के लिए जिम्मेदार होता है और यह भी शोध से स्पष्ट हुआ है कि ऐसे माता-पिता जिन्होंने ज्यादा परिपक्वता वाली उम्र में शादी किया है उनके बच्चों में भी ऑटिज्म वाले बच्चे होने की संभावना ज्यादा रहती है यह समझने की आवश्यकता है कि प्रकृति के द्वारा मानव में भी शुक्राणु और अंडे को जिस उम्र पर बनाया जाना आरंभ कर दिया जाता है उससे सांस्कृतिक रूप से जीने वाले मानव में स्वीकारोक्ति नहीं प्राप्त है क्योंकि मानव एक परिपक्वता की स्थिति में पहुंचने के बाद विवाह जैसी परंपरा की ओर बढ़ना चाहता है या जब वह स्वयं इस बात का अनुभव करने लगता है कि वह अपने जीवन में जो करना चाहता था वह प्राप्त हो गया है और अब उससे संतानोत्पत्ति की ओर बढ़ना चाहिए तब वह विवाह करता है और ऐसा मनोविज्ञान पैदा होने के कारण अब विवाह की आयु में बड़ी अनियमितता हो गई है आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता वाले समाज में अब यह बात बहुत दिखाई देने लगी है जिसके कारण कोशिका विभाजन की क्रिया बढ़ते उम्र से प्रभावित हो जाती है जो अंतिम रूप से बच्चों के जन्म के समय उनके अंगों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की संभावना पर ज्यादा आधारित हो जाती है और इसी गुणों सूत्रीय अनियमितता का परिणाम तथा जीन के स्तर पर आने वाली अनियमितता का परिणाम बहुत सी अनुवांशिक बीमारियों के साथ-साथ ऑटिज्म के होने का भी संकेत देती है

ऑटिज्म एक ऐसा रोग है जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर या ए एच डी कहा जाता है यह विकास से संबंधित एक डिसऑर्डर है इसके बारे में अभी बहुत कुछ तो पता नहीं चल पाया लेकिन इस बात को जान लिया गया है कि यह 3 तरीके का होता है पहला ऑटिज्म का प्रकार ऑटिस्टिक डिसऑर्डर होता है जिसमें बच्चा बातचीत करने में मुश्किल पाता है वह अपनी बात को अटक अटक कर कहता है वह अपनी बात कहने में हकलाने लगता है तथा ज्यादातर बातों को सुनने में और समझने में अपनी बुद्धि को सक्षम नहीं पाता है दूसरे तरह का ऑटिज्म का प्रकार एस्पगैर सिंड्रोम होता है इस तरह के ऑटिज्म से प्रभावित बच्चा किसी एक विषय या किसी वस्तु में ही ज्यादा रुचि लेता है बाकी सारी चीजों से अज्ञान रहता है उसकी अरुचि रहती है वाह जब उस व्यक्ति वस्तु स्थान को देखता है तभी वह चेतना सील उत्साह आदि का प्रदर्शन करता है नहीं तो वह चुपचाप गुमसुम रहता है और तीसरे तरह का परवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर होता है जिस में व्यापक स्तर पर बौद्धिक विकास की कमियां बच्चे में प्रदर्शित होती हैं यदि इसे हम मेडिकल साइंस के आधार पर समझना चाहें तो डिस्लेक्सिया एक ऐसा स्थिति है जिसमें बच्चा अक्षर को नहीं पहचान पाता है उसी तरह से डिस्प्रेक्सिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे ज्यादातर स्वस्थ बना रहता है और वह दूसरों के निर्देशों को मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होता है इसी तरह से अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर एक इस तरह की अनियमितता है जिसमें बच्चा पूरी तरह से अपने में ही आत्म केंद्रित रहता है और वह किसी भी तरह के ध्यान देने से दूर हो जाता है

वर्तमान में ऑटिज्म की कोई भी दवा अभी तक उपलब्ध नहीं है लेकिन बच्चे भगवान की मूरत होते हैं इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है चाइल्ड इस द फादर ऑफ मैन जिसका अर्थ यही है कि बच्चे में सर्वाधिक संभावना होती है आवश्यकता इस बात की होती है कि बच्चे पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाए और यह बहुत धीमी गति से प्रतीत होने वाला डिसऑर्डर है इसके लिए व्यक्ति को गंभीरता पूर्वक अपने बच्चे के साथ रहना पड़ता है उसे धीरे-धीरे सब कुछ सिखाना पड़ता है और जैसे-जैसे बच्चा इस तरफ रुचि पैदा करता है तो ऑटिज्म से प्रभावित बच्चे अच्छे भी हो जाते हैं भारत में बहुत से एनजीओ ऑटिज्म के सेंटर खोलकर इस तरह के बच्चों को सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित कर रहे हैं लेकिन इसके लिए आवश्यकता इसी बात की है कि ऐसे बच्चों के साथ बहुत संयम रखते हुए प्रेम पूर्वक बात की जाए उनकी बातों को ध्यान से सुना जाए और उनके रुचि के बाद उन्हें उन बातों का भी ज्ञान कराने का प्रयास किया जाए जिसकी और वह रूचि नहीं लेते हैं और ऐसा करके ही ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाया जा सकता है क्योंकि यह कहा भी गया है करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बच्चों को उनके मानवाधिकार की स्थापना में एक बार जन्म लेने के बाद सिर्फ इस आधार पर उपेक्षित छोड़ देना उचित नहीं है कि वह ऑटिज्म से प्रभावित है बल्कि उनमें उन संभावनाओं को ढूंढ कर एक सामान्य बच्चे की जीवन की तरफ ले जाने का प्रयास करना ही विश्व ऑटिज्म दिवस का एकमात्र उद्देश्य है जो कठिन अवश्य है लेकिन असंभव नहीं है इसी तथ्य को समझ लेने पर एक ऑटिज्म से प्रभावित बच्चा उपेक्षित रहने के बजाय सामान्य और गरिमा पूर्ण जीवन की ओर अग्रसर हो सकता है।

डॉ आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन (लेखक विगत दो दशक से मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं)

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