इस समीक्षा के लेखक डा.आशीष तिवारी मुंबई के प्रसिद्ध वरिष्ठ चिकित्सक, कवि, कहानीकार और ब्लाॅगर हैं

बात सन् 1993 की है । उस साल जुलाई में एक फिल्म आयी थी “सर” । अन्नू मलिक के गाने खूब मशहूर हुए थे जिसमें एक गाना “आज हमने दिल का हर किस्सा तमाम कर दिया ..” बेहद मशहूर हुआ और तमाम लोगों की जुबाँ पर चढ़ गया । वाकई अन्नू मलिक ने इस गाने पर मेहनत की थी और कुमार सानू का नशा तो सर चढ़ कर बोल रहा था । उस साल 5 सितम्बर को टीचर्स डे पर अपने GSVM मेडिकल कॉलेज में MBBS के पहले टर्म की एक क्लास रूम में मैने जीवन का पहला पब्लिक परफारमेंस अपने गिटार पर यह गाना बजा कर दिया और इस गाने के बीच बीच में पूरी क्लास के मेरे दोस्त समवेत् स्वर में “सर सर सर” गा रहे था । हमारे टीचर्स हमारे सामने थे और हमारा यह अंदाज उन्हे बेहद पसंद आया । हम सबको खूब आशीर्वाद मिला। तब मुझे नही मालूम था कि इस गाने का जन्मदाता कौन है । कालांतर में पता चला कि वो जादूगर कोई और नही राहत इंदौरी साहब थे । तो यूँ शुरू हुआ था मेरा राहत इंदौरी साहब से राब्ता ।

राहत इंदौरी एक इंक़लाबी शायर थे और मेरे पसंदीदा शायर | जनता के दर्द को अपने लफ़्जों में पिरोकर सही निशाना लगाने की उन्हे महारत हासिल थी । उन्होने ऐसे ऐसे श़ेर काग़जों पर उतार दिये हैं जो इतिहास के पन्नों पर सदियों तक उनकी मौजूद़गी को क़ायम रखेंगे । मसलन इसे ही देख लीजिए ।

“बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाय”

एक ईमानदार शायर की कलम किसी तख्त-ओ-ताज को सज़दा नही करती और हुकूमतों की ग़ुलाम नही होती । यही किरदार राहत इंदौरी का था । उन्होने इस पर लिखा भी है ।

“जा के ये कह दो कोई शोलो से, चिंगारी से
फूल इस बार खिले है बड़ी तय्यारी से
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के ना लिए
हमने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से”

वे समय की रफ़्तार को बखूबी समझते थे और देश में सियासत की नब्ज को बड़ी दूर से पहचान लेते थे । जब जब सियासतदाँ जनता से दूर हो जाते थे और सियासत बेलगाम हो जाती थी तब जनता को उनके लफ़्जों का मरहम श़ेर की शक्ल में मिल जाता थी । उनका यह श़ेर बेहद कामयाब और संजीदा है ।

“लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है,
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं, ज़ाती मकान थोड़ी है,
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है!”

राहत इंदौरी एक दौर की पहचान हैं । वो इंदौर ही नही पूरे हिंदोस्ताँ की शान हैं । हम खुशकिस्मत हैं कि हमने उनके दौर को जिया है । राहत की शेरो शायरी की बज़्म कभी खत्म नही होगी । राहत के मुतंज़िर सदियों तक उनका इंतजार करेंगे और देश की गंगा जमुनी सक़ाफ़त का एक और पहरेदार भले ही हमसे जुदा होकर जन्नतनशीं हो गया हो पर राहत कभी मरा नही करते वो हमारे दिलों में हमेशा जिन्दा रहते हैं । इस शेर के साथ राहत इंदौरी साहब को ताज़ियत के साथ आखिरी सलाम

“मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना “

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