यह महज तस्वीर नहीं है, बल्कि कहानी है। सच्ची कहानी, जिसके पात्र और घटनाएं काल्पनिक नहीं हैं। यह एक अंतहीन कहानी है, जो शायद आगे वाले कई दशकों तक याद रखी जाएगी। इतिहास चाहकर भी इसे भुला नहीं पाएगा। आप इसे मजबूरी, पलायन, जुगाड़ या गरीबी की संज्ञा भी दे सकते हैं। लेकिन इससे सच नहीं बदल पाएगा। खबरों के किसी भी माध्यम को देखने पर आपको देशभर में मजदूरों के पलायन की सूचनाएं मिलेंगी।

 

लेकिन यह समझने वाले लोग कितने हैं कि यह केवल मजदूर नहीं, आधुनिक समाज की नींव भी हैं, जिनके दमपर शहर और तथाकथित संपन्नता इठलाती है। पिछले 50 दिनों में यह नींव दरक चुकी है और दरारों के आरपार स्पष्ट दिखाई देने लगा है। उस पार जो दिख रहा है, उसे अब भी शायद समझा नहीं जा रहा है। हमारे देश में महामारियां, अकाल और भुखमरी, दंगे-फसाद और कुदरती आपदाएं देखीं हैं। लेकिन यह नींव उन्हें झेल गई थी। लेकिन एक वायरस ने पूरी दुनिया को हिला दिया है।

कोई ऐसा देश नहीं है जो सीना ठोककर कह सके कि उस पर कोरोना का कोई असर नहीं हुआ है। हमारा देश भी अछूता नहीं है। यह तस्वीर इसका पुख्ता और झकझोर देने वाला प्रमाण है। इस मर्म को शब्दों में नहीं ढाला जा सकता है।

ये तस्वीर भी उसी कड़ी का हिस्सा हैं जो इन दिनों हम सभी को झकझोर रही हैं।

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