डॉ. ध्रुव कुमार त्रिपाठी, एशोसिएट प्रोफेसर

भारत में असंगठित क्षेत्र

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है विभिन्न प्रतिष्ठानों में स्थाई रूप से कार्य करने वाले श्रमिक असंगठित क्षेत्र के श्रमिक कहलाते हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों का वास्तविक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। सरकारों ने आंकड़ों के एकत्रीकरण का कोई प्रयास भी नहीं किया। इक्का-दुक्का प्रयास जो हुए उसमें राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन एन एस एस ओ 2004 और 2005 द्वारा कराए गया। इस सर्वेक्षण में बताया गया की 46 करोड श्रमिकों की कुल संख्या में 2.6 करोड़ संगठित क्षेत्र एवं 43.4 करोड़ यानी  93 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में श्रमिक थे। आप सरकारी आंकड़ों की हकीकत एवं वास्तविकता बखूबी समझते हैं। 125 करोड़ के देश में 50 करोड़ लोग रोजगार में हैं। वह किस रोजगार में हैं, यह तो पता नहीं है। असंगठीत क्षेत्र के श्रमिक पूरे भारत में सड़कों पर, रेलवे स्टेशन पर बस अड़्डो, सब्जी मंडीयों, अनाज मंडीयों जैसी हजारों अनजान कार्यों को सम्पन्न करते है। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का पहिया अनवरत चलता रहता हैं।

सैद्धांतिक विमर्श

श्रम और समय के साथ बाजार की बाजीगरी सब कुछ समझ में आती है। अभी तक समाजवादी विचार मजदूर के साथ खड़ा दिखाई पड़ता था। साम्यवाद भी शोषण का प्रतिकार करता था। पूंजीवाद में निहित कमियों एवं शोषण की प्रवृति के कारण पूंजीवाद की आलोचना होती है अब समाज व्यवस्था को चलाने के लिए पूंजीवाद के विकल्प की तलाश की जा रही है।

प्रसिद्ध विद्वान हरबर्ट मार्कयूज साम्यवादी रूस एवं पूंजीवादी अमेरिका को सर्वाधिकारवादी राज (टोटलटेरियन स्टेट) का पक्षधर बताया हैं। दोनों ही व्यवस्थाओं में सम्पत्ति की प्रधानता है। पूंजीवाद एवं समाजवाद का वर्तमान चरित्र स्वार्थपरता एवं सत्ता शक्ति संरक्षित रखने का है।

रूस और चाइना साम्यवादी लोक कल्याणकारी राज्य चलाने के लिए आजीवन सत्ता प्रमुख बन गए और संपत्ति अर्जित करने के लिए श्रमिकों का कल्पना से परे जाकर शोषण किया। न्याय और अधिकार के लिए उनके साम्यवादी सोच में कोई जगह नहीं है। उन्हें तो सम्पत्ति की शक्ति से विश्व की महाशक्ति बनने के लिए वायरस (कोरोना) बनाने जैसा अमानवीय कृत्य करना पड़ा और मई 2020 में चाइना ने ऐसा किया जिसका पूरे विश्व को परिणाम झेलना पड़ा। उस वायरस ने लाखों लोगों की जान ले ली हैं। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका जो पूंजीवाद का पक्षधर है और विश्व की महाशक्ति बने रहने के लिए चीन की चौतरफा घेराबंदी करता है और विश्व बिरादरी परअपना आधिपत्य अक्षुण रखना चाहता हैं। पूंजीवादी और साम्यवादी दो खेमों में दुनिया बटी हुई दिखाई पड़ती है। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप सिर्फ धन के लोभ के लिए एवं शक्ति और सत्ता को बनाए रखने के लिए किया जा रहा है। तो ऐसी स्थिति में भारत को क्या करना होगा। इसका सीधा जवाब है कि भारत धर्म निष्ठता के मार्ग पर चल कर पूरे विश्व को एक दिशा दे सकता है। आप जानते हैं पूंजीवाद और साम्यवाद के आज की स्थिति का आकलन बहुत पहले गांधी जी को हो चुका था। जिसकी व्याख्या उन्होंने हिंद स्वराज में किया है और साफ संकेत दिया है कि भारतीय जनमानस को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। महात्मा गांधी जी को हम विश्व का सबसे बड़ा समाजशास्त्री मानते हैं। जयप्रकाश नारायण जी जो सबसे अधिक कार्ल मार्क्स से प्रभावित थे। लेकिन मार्क्सवादी भंवर जाल से भी बाहर निकले गये और उन्होंने कहा

“मैंने बहुत वर्षों तक द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के देव मंदिर में अर्चना की लेकिन मुझे भली-भांति समझ में आ गया कि किसी भौतिकता वादी दर्शन में मनुष्य की रचना करने की शक्ति नहीं है एक भौतिकता वादी सभ्यता में सत्पुरुष बनने की कोई तार्किक प्रेरणा नहीं हो सकती हां द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के साम्राज्य में दल ईश्वर का स्थान ले लेता है और लोग भाई अवश्य उसे भय वश उसे स्वीकार कर लेते हैं लेकिन जब ईश्वर ही पाप मैं बन जाए तो पापाचार्य एक सार्वभौमिक आचार संहिता बन जाएगा.”

जल्दी आपके सामने होगा “श्रमिक एंव कामगार विमर्श पार्ट-3”

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