लखनऊ। ऊंची अटालिकाओं में रहने वाले अमीरजादों के शानोशौकत में मोतीयां जड़ने वाले कामगार पूंजीपतियों को गुणवत्ता परख उत्पादन का मेडल (सम्मान) दिलाने वाले श्रमिक आज बेबस और लाचार हो कर अपने वतन (गांव) जाने के लिये परेशान हैं। निर्दयी समाज ने पचान दिन का भोजन भी बिना काम के नही दे सके। जो प्रवासी मजदूर लाखों रूपयें पूंजी पतियों के तिजोरी में भर रहे थे उन्हे इस आपदा में बेहाल छोड़ देना सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं।  फिर भी मजदूर अपने सर पर कफन बांध कर  500 से हजार किलो मीटर पैदल चलने के लिये विवश हैं।

उन्हे तो बस अपने घर जाना है और क्यों न जायें जिन व्यवस्थाओं पर वो इतराते थे जिन सरकार पर ऐतबार करते थे वो उनका अब साथ छोड़ चुकी हैं। आर्थिक हालात बद से बदत्तर हो गया हैं। सरकार जरूर प्रयास कर रही हैँ। लेकिन मजदूरों की संख्या के अनुपात में काफी कम है। इसी दौरान कांग्रेंस पार्टी ने मजदूरों के रूदन को सुन कर 1000 बसों का इन्तेजाम करके उनकी सूची उत्तर प्रदेश सरकार को प्रेषित की।

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना हैं 800 बसों के अलावा बाकी नम्बर माटर साईकिल रिक्सा या आटों के हैं और सरकार के फिटनेस पर भी सवाल खड़ा कर रही हैे। लेकिन कांग्रेस पार्टी के प्रेदश अध्यक्ष अजय लल्लू एक हजार बसों के साथ यूपी बार्डर पर खड़े हो कर मजदूरों को पहले भेजने के लिये सरकार से निवेदन कर रहे थें। लेकिन मजदूरों को दर्द को हल करने के बजाय सरकार ने अजय लल्लू का मान मर्दन करते हुए गिरफ्तार कर लिया। इस प्रकरण में कौन सही हैं कौन गलत महत्वपूर्ण ये नही हैं। बल्कि महत्वपूर्ण ये हैं कि मजदूरों का श्रेय कोई दूसरा न ले ले।

कांग्रेस पार्टी के द्विजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा हैं कि पहले मजदूरों को बसों से उनके घरों तक भेज दिया जाये 800 बस हो या फिर 1000 बस हो, रिक्से का नम्बर हो या फिर टांगे का नम्बर क्यों न हो हम गलत होगें तो सरकार जांच करा कर उसकी सजा हमको जरूर दे इसके लिये पूरी कांग्रेस पार्टी तैयार हैं। लेकिन उस समय मजदूरों के वतन वापसी पर कोई राजनीति न करें।      

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