लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से…

On30 January 2020, Director-General WHO declared that the outbreak of novel coronavirus (2019-nCoV)constitutes a Public Health Emergency of International Concern (PHEIC) as per the advice of International Heath Regulations (IHR) Emergency Committee.

 

 

• As on 31th January 2020, a total of 9720 confirmed cases and 213 deaths have been reported in China.
The epicenter of the outbreak was initially in Wuhan City, Hubei province but has rapidly extended to
all other provinces of China.

• Outside of China, 19 countries have reported a total of 106 confirmed cases, most with travel history from China. These countries are Australia (9), Cambodia (1), Canada (3), Finland (1), France (6),
Germany (5), India (1), Italy (2), Japan (14), Malaysia (8), Nepal (1), Philippines (1), Singapore (13), South Korea (11), Sri Lanka (1), Thailand (14), UAE (4), USA (6), and Vietnam (5).

 

ये स्थिति थी 30 जनवरी 2020 को जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को लेकर अंतरराष्ट्रीय पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी अपने सभी 194 सदस्य देशों के लिए घोषित किया। मतलब साफ है कि यह एक ऐसी आपदा जो बकायदे सूचना देकर दस्तक दी। ये कोई भूकंप सुनामी अतिवृष्टि बाढ़ नहीं है कि अचानक प्रलय की दशा हो गई हो। इससे पहले से पड़ोस में चीन झेल रहा था लेकिन हमारे खुफिया तंत्र व दूतावास ने इसकी भयावहता से सरकार को अवगत नहीं कराया। यदि 30 जनवरी से भी पहले हमारे दूतावास ने भयावहता की जानकारी दी तब तो मामला और भी गंभीर हो जाता है।

सवाल तो बनता है कि हमारे देश के कर्ताधर्ता WHO के सावधान घोषित करने के बाद भी क्या किए और कौन सी तैयारी करते रहे? आज हम दुनिया के तमाम देशों से तुलना कर साबित कर रहे हैं कि हमारी स्थिति उनसे बेहतर हैं। लेकिन उसके साथ इस सच को दबाते हैं कि आज लाकडाउन खुला और लोग सड़क‌ पर आए तो कम्युनिटी संक्रमण का गंभीर खतरा हो सकता है। उससे लड़ने का हमारे पास इंतजाम नहीं है। इसी कारण हम लाकडाउन खोलने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं।

हम उस अमेरिका की भाषा की हामी भरते हैं कि WHO ने चीन के दबाव में सही जानकारी नहीं दी लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने खुद अपने मातहतों की 12 बार अलर्ट को नकार दिया क्योंकि वह अपने चुनावी अभियान में जुटे थे। उसी का हिस्सा उनका भारत दौरा था। जिसमें उनका व्यापारिक हित छिपा था। ऐसे में हमारे रहनुमा भी उनके दौरे को रद्द नहीं कर सके। WHO की पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी को भी महत्व नहीं दिया। आज चीन की सीमा से सटे ताइवान ने बिना लाकडाउन किए अपनी स्थिति को बेहतर बनाए रखा है। उनके यहां कोई कामकाज ठप नहीं है। मतलब साफ है कि हमें अपनी क्षमता और उपलब्ध संसाधनों के साथ जनसहयोग से मुकाबला करना है। ऐसे में हमें कई मोरचे पर एक साथ काम करना था।

आप 30 जनवरी को प्रभावित देशों की सूची देखें तो उसमें कुछ ऐसे देश जिनसे हमारे यहां आना-जाना अधिक है वह ज्यादा प्रभावित हैं फिर भी हम उस तरह सतर्क नहीं हुए जिसकी अपेक्षा थी। केंद्र और राज्यों के बीच कोई एकीकृत प्लान नहीं बना। जो तेजी और गतिविधि दिखी वह मार्च माह में जनता कर्फ्यू और फिर लाकडाउन के बाद। यदि हम पहले ही किट और लैब का प्रबंध करने के साथ ही लोगों को जागरूक करते तो हम आसानी से इस संकट को हरा लेते। टोटल बंद आखिरी इलाज है जिसे हम अपना चुके हैं। यह इतना लंबा खींच चुका है कि लोग महामारी से बच जाएंगे लेकिन इसके साइड इफैक्ट्स भूख, बेरोजगारी और नौकरी के संकट से मर जाएंगे। अन्य मानसिक बीमारियों और तनाव ने भी दस्तक दे दी है।

यह कह कर हम बच नहीं सकते कि अमेरिका, इंग्लैंड, स्पेन और इटली से हम बेहतर हैं। हमारी और उनकी परिस्थिति में बहुत अंतर है। अधिक घनत्व वाली बसावट और बड़े जनबल की चुनौती बड़ी है। उसके मुताबिक हमारे पास संसाधन नहीं है। वह अपने संसाधनों से लड़ाई लड़ें और हम अपने लोगों के साहस व इच्छाशक्ति से लड़ रहे हैं। ऐसे में हम पहले सतर्क होकर क्षेत्रवार प्लान नहीं कर सकें। यदि ऐसा करते तो सभी कंपनियां चलती और लोग बचाव भी करते।आज मंडरा रहे गंभीर आर्थिक संकट व बेकारी की नौबत नहीं आती।

फ़रवरी मार्च में सभी बड़े आयोजन रद कर सिर्फ हेल्थ पर फोकस करना था जो 22 मार्च के बाद किया गया। अब संकट ज्यादा गंभीर है क्योंकि इस बीच लाक डाउन के दौरान की गई जांचें भी संदिग्ध हो गई है क्योंकि किट के गुणवत्ता रहित होने की बात आई है और किट वापस की जा रही है। तीस करोड़ की इसकी खरीद में 18 करोड़ की दलाली भी खाने का रहस्योद्घाटन दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे में हुआ है। अब सवाल उठता है कि जो इस किट के भरोसे ग्रीन सिग्नल पा चुके हैं और वे कोरोना के संवाहक होंगे तो बहुत मुश्किल होगा।

सवाल एक ही है कि एक जिम्मेदार लोकप्रिय सरकार जिसके ऊपर 130 करोड़ लोगों की जिम्मेदारी वह आसन्न खतरे की जानकारी के बाद भी तत्काल एक्शन मूड में क्यों नहीं आई। संभव है कि कागजों में सक्रिय दिखे लेकिन एक्शन तो मार्च में सीधे जनता कर्फ्यू से दिखा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here