डॉ. आशीष तिवारी, सीनियर फिजीशीयन. मुम्बई….

हम सबकी जिन्दगी अनेक दुश्वारियों से भरी होती है जिनका लगातार सामना करते हुए ही आगे बढ़ने का रास्ता मिलता है । ये संघर्ष जीवन का अटूट हिस्सा होता है । संघर्ष खत्म तो मानो जीवन खत्म । इन्ही संघर्षों की तमाम दास्तानों का तानाबाना बुनती फिल्म है दिल बेचारा । यह सुशांत सिंह राजपूत की अंतिम फिल्म है और विगत कई दिनो से खूब चर्चा में है ।

जमशेदपुर के एक काॅलेज में पढ़ने वाली सुंदर सी लड़की किज़ी (संजना) जिसे थायराइड का कैंसर है और उसे लगातार आक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसके लिए वो एक छोटा सा आॅक्सीजन का सिलिंडर हमेशा अपने कंधे पर लेकर चलती है । वो रिजर्व नेचर की संवेदनशील लड़की है । काॅलेज में उसकी मुलाकात मैनी (सुशांत) से होती है जो कि एक कैंसर सरवाइवर होता है । तमाम मुलाकातों के बाद इनमें दोस्ती हो जाती है । किज़ी एक गायक वीर (सैफ अली खान)की फैन है और उसे हमेशा एक बात कचोटती रहती है कि उस गायक वीर ने उसके सबसे पसंदीदा एक गाने को अधूरा गाकर ही क्यों छोड़ दिया । वो मेल पर वीर के संपर्क में आती है वीर उसे मिलने के लिए पेरिस बुलाता है । बड़ी मुश्किलों से किज़ी मैनी और अपनी माँ के संग पेरिस पहुँचती है । पेरिस के एक होटल में जब वो अपने पसंदीदा गायक वीर से मिलती है तो …

क्या उसे अपने सवालों का जवाब मिल सका ?
क्या वो अपने कैंसर से जीत सकी ?
क्या वो मैनी के संग जिन्दगी के सुनहरे पलों को जी सकी ?
इन सवालों का जवाब तो फिल्म देखकर ही मिलेगा ।

जहाँ तक अभिनय की बात है किज़ी यानी संजना का अभिनय रोचक है । नयी होने के बावजूद वो आकर्षक लगी है । किज़ी के मम्मी पापा के रोल में शाश्वत व स्वस्तिका ने बेहतरीन अभिनय किया है । सैफ अली खान ने वीर के छोटे से रोल में बेहद निराश किया । अब बात आती है सुशांत की तो सुशांत का अपना एक मैनेरिज्म है और स्टाइल है । उसने मेहनत की है कई दृश्यों में बेहद प्रभावी लगा है तो कई बार सामान्य भी । इसका कारण सुशांत नही फिल्म का निर्देशक है।

फिल्म की कहानी दोषयुक्त है । धाराप्रवाह नही है इसलिए दर्शकों से कनेक्ट बनाने में कमजोर निकली । स्क्रीनप्ले भी कमज़ोर है और डायलाॅग्स भी साधारण हैं । फोटोग्राफी ठीक है । इस फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष इसका संगीत है । ए आर रहमान नाम बड़ा और दर्शन थोड़े वाली कहावत पर खरे उतरे हैं । एक भी गाना ऐसा नही जो याद रखा जा सके । लिरिक्स भी बेहद साधारण हैं । प्रेम कहानियों में एक दो जानदार गाने तो संगीतकार बना ही देते हैं । यहाँ रहमान पूरी तरह से असफल हो गये । फिल्म के निर्देशक मुकेश छावड़ा कम अनुभवी लगते है । वो इस फिल्म को बेहतर बना सकते थे पर नही बना सके । उनके लिए एक ही बात फिट होती है निर्देशक बेचारा ।

फिलहात तो इस फिल्म को केवल ढाई स्टार । आधा स्टार अधिक इसलिए दे रहा हूँ कि सुशांत से इमोशनली जुड़ाव हो गया है । डिजनी हाॅटस्टार पर उपलब्ध इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है ।

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