मदिरालय और देवालय

देवालय में बैठे देव, असमंजस में हैं।
महामारी की वजह से, देवालयों के दरवाजे बंद हैं।
लेकिन मदिरालय के भक्त,बहुत ही प्रसन्न हैं।
पियेंगे छककर प्रसाद,भूलकर महामारी का विषाद।
राजा खाने के लिए,काम न दे सका,कोई गम नहीं है, पर पीने के लिए,मदिरालय तो खुलवा दिए,क्या यह किसी सौगात से कम है।
माना हाथ में काम नहीं है,जिससे जेब में दाम नहीं है, घर के बर्तन,बीबी का छुपाया धन, निछावर कर देंगे मदिरालयों पर।
राजा को बहुत उम्मीदें हैं हमसे, वादा करते हैं खाली खजाने भर देंगे हम।।

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