Total Samachar जोशीमठ से अलग है अहमदाबाद के हालात ,वैक्यूम के चलते हर साल कई सेंटीमीटर धंस रहा शहर

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अमरदीप सिंह, गुजरात

भूशास्त्रियों  की माने तो सिर्फ जोशीमठ को ही खतरा नहीं है. अहमदाबाद की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. गांधीनगर की सीस्मोलोजी इंस्टिट्यूट की स्टडी में सामने आया है कि अहमदाबाद के कई इलाके हर साल कई सेंटीमीटर धंस रहे हैं.

जब भी इंसान प्रकृति के काम में बाधा डालेगा, पर्यावरण खराब होगा. कुदरत अपने ही तरीके से उसकी व्यस्था करेगा , इन दिनों जोशीमठ में धस रहे होटल मकान और दीवारों की खूब चर्चा है लेकिन ऐसे कई शहर है जो बहुत ही आहिस्ता आहिस्ता पाताल में समा रहे है और उन्ही में से एक है अहमदाबाद ये हम नहीं कह रहे है ये हकीकत सामने आई है सिस्मोलॉजी के एक रिसर्च में। अहमदाबाद के वटवा और भोपाल जैसे कुछ इलाके हर साल कई सेंटीमीटर पाताल में समा रहे है , यहाँ की ज़मीन निचे धसती जा रही है।

गांधीनगर के सिस्मोलॉजी इंस्टिट्यूट के डॉ राकेश दुमका ने ये पूरा गणित समझाया की कैसे पिछले कई दशक से अहमदाबाद के जलस्तर के उतर चढाव की वजह से अहमदाबाद की ज़मीन की सतह में फर्क आ रहा है। डॉ राकेश दुमका ने १९६४ से जब इस शहर के जस्तर का अध्यन किया तब उन्हें इस धसते हुए शहर की हकीकत समजह में आई , पहले ये जानले की आखिर कार अहमदाबाद की ज़मीन के साथ हो क्या रहा है। अहमदाबाद हर साल 12 से 25 मिलिमीटर यानी सवा से ढाईसेंटीमीटर धंस रहा है. वजह है ग्राउंड वाटर का तेजी से निकाला जाना।

इस स्टडी के मुताबिक अहमदाबाद के वटवा और बोपल जैसे इलाको में हर साल ढाई सेंटीमीटर तक ज़मीन धस रही है जो निश्चित तौर पर सोचने को मजबूर करता है हालांकि डॉ राकेश के मुताबिक ये कोई डरने की बात नहीं है , ज़मीन से पानी के ज्यादा निकासी की वजह से जो रिक्त स्थान या वैक्यूम बना है उसीकी वजह से ज़मीन निचे जा रही है जो एक समय के बाद बंद हो जायेगी और फिर ज़मीन स्थिर हो जाएगी ,

वही एक रिपोर्ट के मुताबिक लगातार बढ़ता समुद्री जलस्तर और जलवायु परिवर्तन से गाद यानी सेडीमेंट्स की वजह से गुजरात में 208 हेक्टेयर की जमीन बढ़ी है. लेकिन समुद्री कटाव की वजह से गुजरात ने अपना 313 हेक्टेयर जमीन खो दिया है।

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