• लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह कलम से
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जी हां, राजनीति से हटकर भी बहुत कुछ समाज में घट रहा वह किसी को पता चलता है तो किसी को नहीं। उसमें भी कुछ इतनी अच्छी बातें भी होती है जिसका सभी को पता होना चाहिए लेकिन वह दो चार लोगों तक चर्चा होकर रह जाती है। टीवी चैनल भी बड़ी-बड़ी ब्रेकिंग न्यूज में उलझे रहते हैं उन्हें भी मानवीय रिश्तों को नया आयाम वाली खबरें बमुश्किल मिल पाती हैं। 

वहीं बुरी बात है मतलब किसी की निंदा है तो उसे दौड़ने के लिए पांव की जरूरत नहीं होती है। मानव स्वभाव बनता जा रहा निंदा रस में डूबने और नकारात्मक चीजों को प्रोत्साहित करने का। ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि सकारात्मक और बिना किसी स्वार्थ की जा रही सेवा को हम अहमियत दें। 

अब जब कोई दो राजनीतिक व्यक्ति वह भी दो अलग-अलग दलों के और दो अलग-अलग स्थान पर होकर भी किसी ऐसे अनजान युवक की मदद को बढ़ते हैं तो यह एहसास हो जाता है कि नहीं अभी संवेदना, मानवता के साथ ही सामाजिकता का भाव देश में बहुत मजबूत है। उसे किसी चहारदीवारी या खांचे में बांधकर नहीं रखा जा सकता। आज के दिन यह चर्चा इस कारण भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि एक व्यस्ततम सरकार बसों की गिनती में उलझी है। एक राष्ट्रीय दल एक हजार बसें मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए दे रही है। यह मामूली बात जलेबी की तरह छानी जा रही। बसों की संख्या दो सौ कम निकली तो उस दल के नेताओं पर मुकदमा दर्ज हो गया। यह समझ से परे है कि कोई दानदाता यदि अपने संकल्प से कम दिया तो उस पर एफआईआर क्यों होनी चाहिए? उसे ठेका तो दिया नहीं गया था।

इस तरह राजनीति का यह घटिया चरित्र जब पिछले चार दिनों से चल रहा हो उस समय कुछ ऐसा घटा कि उम्मीद जगी कि नहीं अभी भी राजनीति में अच्छे लोग हैं। 

बात है आज 20 मई की। दोपहर में जब मैं खुद अस्पताल में पत्नी के इलाज को लेकर डाक्टर के नंबर का इंतजार कर रहा था तब तक वाट्सएप पर मेरे अज़ीज़ मित्र भाई राजेश झा का मैसेज गिरा। यह एक फेसबुक लिंक था। उसे क्लिक किया तो युवा पत्रकार श्याम मीरा सिंह की पोस्ट खुली जिसमें दिल्ली के हौज खास क्षेत्र में रह रहे आईआईएमसी के छात्र वैभव सिंह के बीमार होने कई दिन के इंतजार के बाद जांच होने और पांच दिन बाद भी जांच रिपोर्ट न मिलने की व्यथा थी। अब मैं उस अकेले युवक की मानसिक दशा को लेकर बेचैन हो गया।

लखनऊ से दिल्ली कैसे मदद पहुंचें। इस उधेड़बुन में मैंने वाराणसी के जुझारू कांग्रेस नेता और कभी आप के पूर्वांचल संयोजक रहे संजीव सिंह को वाट्स एप पर मैसेज किया। मैंने लिखा यह दिल्ली का प्रकरण है आप अपने पुराने रिश्तों को खंगालें और युवक की मदद करिए। संजीव तुरंत सक्रिय हो गए। उन्होंने दलीय सीमाओं को नजरंदाज कर एक युवक की मदद के लिए आप सांसद संजय सिंह से आग्रह किया। वह भी बिना देर किए आनन फानन मदद को तैयार हो गए। मोबाइल नंबर न होने से संपर्क नहीं हो पा रहा था। संजीव ने मुझे मैसेज किया आप जल्दी नंबर उपलब्ध कराइए। मैं अस्पताल में था तो राजेश झा जी को जिम्मेदारी दी। वह श्याम मीरा से संपर्क साधे और वैभव का नंबर उपलब्ध कराया।

इसके बाद सांसद संजय सिंह ने वैभव को फोन मिलाया अपना परिचय दिया और बनारस से संजीव सिंह को भी कांफ्रेंसिंग काल पर लिया। इन दोनों नेताओं वह भी अलग-अलग दल के और जिनसे कभी नहीं मिला उनसे बात कर वैभव हैरान था। सांसद संजय सिंह ने कहा तुम बिल्कुल मत घबडाओ कोई दिक्कत हो तुरंत संपर्क करना। मेरा नंबर नोट कर लो।राजनीति अलग चीज है सामाजिक रिश्ते अलग है। वैभव को उस समय तक काफी राहत मिल चुकी थी। इन दोनों लोगों से बात करने के बाद उसका हौसला बढ़ गया था। उसने बताया आज उसका जन्मदिन है उसके लिए आप लोगों से बात करना ही एक बड़ा तोहफा है। दोनों नेताओं ने जन्म दिन की बधाई दी।

वह पिछले कई दिनों से जिस संत्रास और तनाव में था। इन लोगों की आत्मीयता ने उसे आंतरिक रूप से मजबूत कर दिया। उसकी जांच रिपोर्ट भी ठीक निकली। सांसद ने कहा भी कि काफी लोग तमाम तरह के भय को लेकर परेशान हैं। 

आप सांसद संजय सिंह और कांग्रेस नेता व विधानपरिषद वाराणसी स्नातक सीट के प्रबल दावेदार संजीव सिंह को इस नेक कार्य के लिए बधाई कि भविष्य में अपने सामाजिक दायित्व का यूं ही निर्वहन करें।

एक राजनीतिक व्यक्ति से इसी तरह के निर्वैर निष्पक्ष त्वरित मदद की लोगों को अपेक्षा है। इस दिशा में अन्य नेता भी बढ़ें। उनके थोड़े संबल से पूरी तस्वीर बदल सकती है। राजनीतिज्ञों के दोहरे चेहरे समाज में राजनीति को बदनाम करते हैं। इसी कारण अच्छे लोग राजनीति के चौखट को पार नहीं कर पाते। मैं तो एक सूत्रधार था कि किसी तरह मदद हो जाय शाम तक सार्थक और सकारात्मक परिणाम मिलने पर मन को सुकून मिला कि आज का मेरा दिन सार्थक रहा।

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