सत्यम ठाकुर, ब्यूरो चीफ, गुजरात

गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए अहमदाबाद के सिविल अस्पताल को कालकोठरी से भी बदतर बताया हैं। अदालत ने बीजेपी-शासित गुजरात सरकार के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल  के बारे में एक अहम आदेश में कहा है कि अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल की तुलना ‘काल कोठरी’ से की जा सकती है। ये पहली बार नहीं है कि अहमदाबाद का सिविल अस्पताल विवादों में आया हो। इससे पहले भी वेंटिलेटर और मरीजों को मिल रही सुविधाओं को लेकर सिविल अस्पताल विवादों में रहा है।

गुजरात के अहमदाबाद का सिविल अस्पताल जो की एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है उसकी तुलना अब शमशान घाट से होने लगी है। वजह है प्रशाशन का गैर जिम्मेदाराना रवैया। कोरोना ने गुजरात में कहर बरपा रखा है। ऐसे में कोरोना से लोगो की जान बचाने के लिए अपनी जान हथेली पर रख कर काम कर रहे रेजिडेंट डाक्टरों का ही सुध लेने वाला कोई नहीं है। गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना से हो रही मौतों वाले राज्यों में से एक है।

अब तक अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 377 से भी अधिक मौतें हुई हैं। जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल को लेकर लगातार शिकायते आती रही है।  फिर वो चाहे अस्पताल में मरीजों की देखभाल को लेकर हो या फिर मरीजों की देखभाल कर रहे है डाक्टरो को दिए जा रहे मास्क और पीपीई किट को लेकर हो। गुजरात में लगातार दायर हो रही जनहित याचिकाओं पर हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए गुजरात सरकार को जमकर लताड़ लगाते हुए कड़े शब्दों में दिशा निर्देश जारी किया हैं।

इस तरह के लगातार मिल रहे शिकायतों की हकिकत जानने जब टोटललसमाचार की टीम सिविल अस्पातल पहुंची तो वहां सबसे पहले हमरी टीम की मुलाकात  डॉ प्रभाकर हुई। जब हमारी टीम ने उसने इन शिकायतों के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्होने सब ठीक ठाक कह कर शिकायतों के प्रश्न को टाल दिया। फिलहाल डॉ प्रभाकर  सिविल अस्पताल के OSD पद विराजमान हैं। उनके मुताबिक सब ठीक ठाक है। अस्पताल में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। करीबन १५ हजार पीपीई किट का स्टॉक मेन्टेन किया जा रहा है और उसी के आसपास मास्क व अन्य जरुरी सामग्रियों भी अस्पताल में मौजुद हैं।

हालांकि जब उनसे ये सारी बातें आन रिकार्ड बोलने को कहा तो उन्होंने ये कहकर कन्नी काट ली के हाई कोर्ट का मेटर है तो वो नहीं बोल सकते।  इसके बाद हमरी टीम ने अस्पताल में मौजुद रेजिडेंट डॉक्टर्स से बात की तो उनका कहना था कि फ़िलहाल स्थिति ठीक है लेकिन शुरआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। सिविल अस्पताल में ९०० से ज्याद रेजिडेंट डॉक्टर्स है जो दिन रात कोरोना से पीड़ित मरीजों के इलाज में अपनी सेवाएं दे रहे है। इस मामले में कई रेजिडेंट डॉक्टर्स से फोन पर तो बात हुई लेकिन आन रिकार्ड कोई कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। पता ये चला कि उन्हें मीडिया से दूर रहने की हिदायत दे दी गई है।


पुलिस डॉक्टर व् अन्य लोगों द्वारा दायर जनहित याचिका को संज्ञान लेते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने विजय रूपाणी के नेतृत्व वाली भाजपा राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की और अहमदाबाद के सिविल अस्पताल को ‘एक कालकोठरी जितना अच्छा, या इससे भी बुरा’ बताया।  कोर्ट ने राज्य की स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को ‘डूबता हुआ टाइटेनिक’ करार देते हुए पीठ ने कड़ा रवैया अपनाते हुए झाड़ लगाईं है।

इस मामले में अतिरिक्त मुख्य सचिव पंकज कुमार, सचिव मिलिंद तोरवाने और प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जयंती रवि, जो सिविल अस्पताल के इंचार्ज है, को राज्य में गंभीर स्वास्थ्य संकट के लिए जिम्मेदार ठहाराया. कोर्ट ने मरीजों और कर्मचारियों को होने वाली समस्याओं के लिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल और मुख्य सचिव अनिल मुकीम की भी खिंचाई की. वही राज्य सरकार लगातार अपनी नाकामी को छुपाते हुए सैंपल टेस्ट और सुविधाओं को लेकर लगातार असमजस की स्थिति पैदा करती रही है। नितिन पटेल अभी भी सबकुछ ठीक ठाक होने का दवा कर रहे है हालांकि ये जरूर कह रहे की वो हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते जरुरी कदम उठाएंगे।

अदालत में कोरोना से हो रही मरीजों की मौत के बढ़ते आकड़े पर भी सरकार को आड़े हाथो लिया है पीठ ने पूछा, ‘क्या राज्य सरकार इस तथ्य से अवगत है कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर न होने के कारण सिविल अस्पताल में मरीज मर रहे हैं? वेंटिलेटर्स की इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार क्या तैयारी कर रही है.’अदालत ने सरकार के टेस्टिंग प्रोटोकॉल की भी आलोचना की। जब राज्य ने अदालत से कहा कि वे तय करेंगे कि निजी प्रयोगशालाएं कोरोना वायरस के लिए नमूनों का परीक्षण कब शुरू करेंगी।

सैंपल टेस्ट पर भी लगातार सवाल उठ रहे है हाल में राज्य में केवल 19 सरकारी प्रयोगशालाएं हैं जो कि कोरोनो वायरस की जांच के लिए आरटी-पीसीआर परीक्षण करती हैं। अभी तक केवल 1,78,068 नमूनों का परीक्षण किया गया है. जो तमिलनाडु की तुलना में काफी कम है इस आधार पर अदालत ने सरकार से तुरंत टेस्टिंग किट खरीदने और निजी लैब को सरकारी दरों पर परीक्षण करने में सक्षम बनाने के लिए कहा.
१४२ पन्नो के आदेश में अदालत ने कोरोना टेस्ट के प्रोटोकॉल यानी नियम क़ानूनों के लिए भी राज्य सरकार की ज़ोरदार खिंचाई की है। अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि वह कृत्रिम तरीके से कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करना चाहती है। उसके कहने का मतलब यह है कि राज्य सरकार जानबूझ कर कोरोना के कम मामले बता रही है, वह जाँच नहीं कर रही है ताकि कोरोना संक्रमण की बड़ी तादाद सामने नहीं आए बता दें कि महाराष्ट्र के बाद सबसे अधिक कोरोना संक्रमण का राज्य गुजरात ही है। गुजरात में 14 हज़ार 63 संक्रमण के मामले आए, 858 लोगों की मौत हुई है।

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