डॉ. शिव गोविंद पुरी, एशोसिएट प्रोफेसर.

कोरोना वायरस के संदर्भ में डॉ पुरी ने बताया कि कोरोना वायरस की संस्कृति को आज के परिवेश में देखने पर यह बात स्पष्ट होती है कि जहां एक तरफ कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है, तो वहीं पर सभी राष्ट्रों को एक दूसरे के समीप आने में मदद भी की है। वैश्विक दृष्टि से समझने पर प्रतीत होता है कि सभी राष्ट्र अपने आप इस भयंकर महामारी एवं आने वाली अन्य आपदाओं हेतु ऐसी कार्य संस्कृति को विकसित करें, जिससे की वह सामूहिक सहयोग उदारता एवं समरसता के साथ आगे बढ़ सके एवं आपसी भेदभाव भुलाकर निदान हेतु सहयोग करें।

इसके अतिरिक्त कोरोना वायरस यह भी संकेत देता है कि हमें प्रकृति से दूर नही रहना हैं। प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना ही होगा क्योंकि प्रकृति से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ अब संभव नहीं है। अगर जीवन को जीना है तो प्रकृति के साथ जीना पड़ेगा और एक दूसरे के सहयोग के साथ ही आप आगे का जीवन जी सकते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का कोई संदेह नहीं है। इसके अतिरिक्त कोरोना वायरस यह भी संकेत देने का प्रयास किया है, सभी को एक साथ चलना होगा।  महत्वपूर्ण बात यह है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हम सकारात्मक रूप से करेंगे और मानवता की रक्षा, संरक्षा एवं सहयोग करने के लिए सजग रहेंगे। तभी जीवन बचेगा। कोरोना महामारी एक चुनौती है। जैसा कि हमारे वैज्ञानिकों ने लगातार यह सुझाव दिया है कि इस चुनौती को कैसे हम एक अवसर के रूप में तब्दील करें। सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों में कैसे परिवर्तन लाएं। उपरोक्त प्रश्नों के संदर्भ में विभिन्न एजेंसियों से एक बात स्पष्ट हुई है कि अगर हम सामाजिक दूरी एवं कुछ उपायों को लगातार अपने जीवन का हिस्सा बना लें और उन पर अमल करें तो निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में हम सफल हो सकते हैं।

अगर हम लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दें साथ ही स्थानीय उपज एवं कामगारों को प्रोत्साहन देकर उनको पर्याप्त बाजार एवं पूंजी उपलब्ध कराएं तो अपने ही क्षेत्र में सभी कामगारों, स्वयंसेवी, संस्थाओं, सहायता समूह एवं अन्य संगठित क्षेत्र के लोगों को पर्याप्त अवसर एवं रोजगार की उपलब्धता होगी तथा साथ ही वे आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर होंगे। यह एक सराहनीय प्रयास हो सकता है।

जैसा की सर्वविदित है कि हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या खुदरा व्यापार पर निर्भर करती है। उसे रोज पैसे की आवश्यकता होती है। जिससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। तो इस परिस्थिति के लिए हम कुटीर एवं लघु उद्योगों जैसे मोमबत्ती बनाना, शहद पालन, पशुपालन, दुग्ध उद्योग, घरेलू एवं कुशल कामगार, इंफ्रास्ट्रक्चर यानी भवन निर्माण के काम आदि अनेकों प्रकार के कार्य हो सकते हैं। इनके माध्यम से जीवन को सरल एवं सामान्य बनाने में मदद मिल सकता है। वर्तमान राज्य एंव केंद्र की सरकार मिलकर इस दिशा में अनवरत कार्य योजना बना रही हैं। जिससे श्रमिकों को रोजगार और छोटे कामगारों को रोजी उपलब्ध हो सके। ऐसा देखा जा रहा है कि छोटे उद्योगों के लिए बैंकों के माध्यम से बड़े आसान और सुलभ तरीके से धन मुहैया कराई जा रही है। अगर यह सही हैं तो यह कदम सकारात्मक हैं यदि नही सिर्फ दिखावें के लिये किया जा रहा हैं। तो यह स्वयं सरकार एंव समाज के लिये आत्मघाती होगा।

आज इस बात की आवश्यकता है कि हमारे श्रमजीवी समाज को अधिक से अधिक अवसर प्राप्त हो सके। मजदूर या श्रमिक कोई भी अपने राज्य से बाहर न जा सके इस बात पर जोर दिया जा रहा हैं, क्योंकि पिछले दिनों जिस प्रकार से प्रवासी मजदूर लाकडाउन के बाद अपने घरों की ओर पलायन हुए उस समय बड़ी हृदय विदारक घटना देखने और सुनने को मिली। जो एक सभ्य समाज के लिए बड़ा ही निंदनीय है। यह सही है की सरकारों ने मिलकर बहुत प्रयास किया। लेकिन यह भी सही है कि मजदूरों को बहुत यातनाएं झेलनी पड़ी। अब शायद वह काम के सिलसिले में दूसरे राज्य को जाने से परहेज करें। यह स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। लेकिन कोई भी व्यक्ति अपना घर बड़े मजबूरी में छोड़ता है। उसे यदि अपने राज्य या अपने गांव और शहर के नजदीक रोजगार प्राप्त हो जाए। तो वह दूसरे शहर या दूसरे राज्य में नहीं जाना पसंद करता। लेकिन रोजगार की स्थिति हमारे देश में चिंताजनक है। यह बात कहने में हमें कोई संकोच नहीं है।

लाख सरकारी प्रयासों के बाद भी रोजगार सृजन जनसंख्या के अनुपात में नहीं हो पा रहा है। यह कड़वी सच्चाई है जिसे हम सभी को स्वीकार करना पड़ेगा। सरकार और समाज एक दूसरे के सहयोग और विश्वास पर चलते हैं। आज हमें इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि समाज को अगर प्रगतिशील बनाना है और सरकार को मजबूत करना है तो दोनों मिलकर उन्नत तकनीक का प्रयोग अपने उद्योगों में करें। सरकार निष्पक्ष भाव से उद्योगों की मदद करें। आप देखेंगे भारत में काम करने वालों की कोई कमी नहीं है बशर्ते उन्हें एक अच्छा रास्ता दिखाने वाला, प्रौद्योगिकी उपलब्ध करने वाली एजेंसी दोनों ठीक से मिले, तो निश्चित रूप से हमारे श्रमिक धरती से सोना जरूर निकालेंगे। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए।  तभी हमारा देश समर्थ और ताकतवर बनेगा।

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