डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

 

प्रकृति का सबसे नैसर्गिक गुणों मां बनने की तरफ अग्रसर थी रात्रि के 2:00 बज चुके थे और वह प्रसव पीड़ा से पीड़ित हो रही थी वह समझ नहीं पा रही थी कि वह किस से बताएं क्योंकि वह तो उस दौर में रह रही है जब महिला सशक्तिकरण का दौर है यही नहीं वह तो उस जगह का प्रतिनिधित्व करती है जहां विश्व में पहली बार महिलाओं को मतदान देने की बात स्वीकारी गई थी और उसने ग्रीन पार्लियामेंट बनाने की कसम खाई थी ऐसे में कैसे वहां अपनी इस परेशानी में भी यह सोचे कि उसे अस्पताल गाड़ी से जाना है या इस कठिन परिस्थिति में भी ग्रीन पार्लियामेंट के उद्देश्य को खत्म नहीं होने देना है और इसी झंझावात के बीच वह अपनी साइकिल उठाती है और अपनी प्रसव पीड़ा के साथ अस्पताल की ओर चल पड़ती है रात्रि के 3:04 हो रहे हैं और खुद अपनी साइकिल को प्रसव पीड़ा में चला कर उस महिला ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया फिर अपने मोबाइल को उठा है फेसबुक पर इस बात को अपडेट किया और यह महिला इसी पृथ्वी पर जन्म लेने वाली एक सामान्य महिला ही तो है।

लेकिन वह सांसद है उसके अंदर वह भाव नहीं है कि मेरे पास वैभव दिखाने के लिए प्रसव के समय में गाड़ी से दौड़ना चाहिए क्योंकि अपनी वेदना में भी उसके लिए देश सर्वोच्च है पर्यावरण सर्वोच्च है महिला सशक्तिकरण की स्थापना का उद्देश्य सर्वोच्च है और यह कहानी है न्यूजीलैंड के पार्लियामेंट की सांसद जूली एनी जेंटर की जिन्होंने ग्रीन पार्लियामेंट के उद्देश्य को भी नहीं मरने दिया न्यूजीलैंड में वहां के सभी सांसद प्रधानमंत्री साइकिल से जाते हैं ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके क्या भारत में ऐसी सोच हम उत्पन्न कर पाने में सफल हो पाए और ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं है क्यों नहीं प्रत्येक भारतीय के अंदर आत्मबल कि वह ऊंचाई है जो जूली में है क्यों नहीं भारत की महिलाएं जूली की तरह अपने को सशक्त पा रहे हैं जूली ने भी तो रात के अंधेरे में किसी से मदद नहीं ली और यह घटना है दिनांक 28 नवंबर 2021 की रात की और ऐसे में जब हम भारत में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो इस उदाहरण को वर्तमान के संदर्भ में विश्लेषण करने की आवश्यकता है ताकि हम समझ सके कि एक ही विश्व में रहने वाली एक महिला के अंदर इतना आत्मबल आ चुका है और उस से बढ़कर उसके लिए राष्ट्र प्रमुख है पर्यावरण प्रमुख है जिस दिन जूली की तरह आत्मबल की सूची लेकर भारत में महिला सशक्तिकरण का दौर चलेगा तब भारत में नारी को सिर्फ देवी कहकर भरवाने के बजाय एक सशक्त महिला जूली की तरह हर मोड़ पर मिल जाएगी।

यह एक हास्यास्पद बात है कि भारत जैसे देश में यदि ऐसी स्थिति होती तो दूसरे दिन सारा मीडिया या लिख रहा होता कि भारत की सरकार निकम्मी है और आज भारत के एक नागरिक को साइकिल पर चढ़कर प्रसव के लिए अस्पताल जाना पड़ा सरकार कुछ नहीं कर रही है नागरिकों के लिए और इतनी खराब स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है और इसी पर चुनाव की बात करी जाने लगती सरकार हटाने की बात की जाने लगती है जबकि यह एक बात और महिला के आत्मबल सशक्तिकरण और उसके राष्ट्र के प्रति सोच किए हैं यह सामाजिकता के आधार में भारत जैसे देश में इस आधार पर भी देखा जाता है कि जूली जैसी महिला गरीब है जो साइकिल पर अस्पताल रही बच्चा पैदा करने के लिए और इस बात को कहने में किसी को संकोच नहीं होगा कि भारत में भले प्रसव पीड़ा से एक औरत मर जाए लेकिन जब तक गाड़ी घोड़े का प्रबंध ना हो उसे अस्पताल कैसे ले जाए जाए और इस व्यवस्था को हम बड़े-बड़े समाचार बनाकर छाप भी सकते हैं शायद यही कारण है कि विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष 4300 महिलाएं प्रसव के दौरान मर जाती हैं सूचना हमको है कि क्यों नहीं अभी तक हमारे देश में जूली पैदा हो पाई और जूली का मॉडल हम क्यों नहीं बना पाए शायद यही चिंतन महिला के लिए आज इस राष्ट्र में आवश्यक है डॉक्टर आलोक चांटिया अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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