डॉ दिलीप अग्निहोत्री

प.जसराज अनेक बार लखनऊ आये थे। उनके गायन से प्रभावित होने वाले यहां भी बहुत लोग है। पिछली बार वह लखनऊ के भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय आये थे। इससे जुड़ा एक रोचक प्रसंग है। उनको यहां तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी के साथ दीक्षांत समारोह में शामिल होना था। राज्यपाल को इसी कार्यक्रम में रहना था। लेकिन जब उनको पता चला कि दीक्षांत समारोह के बाद पंडित जसराज का गायन होना है,तब उन्होंने अपना कार्यक्रम बदल दिया। उन्होंने समारोह के इस दूसरे चरण में भी सहभागी होने का निर्णय किया। गायन की तैयारी हो चुकी थी। बीएल जोशी उठे और पंडित जसराज के पास गए। तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे। कुछ समय के लिए गायन रोक दिया गया। बाद में पता चला कि राज्यपाल उनसे कुछ देर गायन रोकने का आग्रह करने गए थे। क्योंकि उन्होंने उनका गायन सुनने के लिए अपनी पत्नी को बुलाने हेतु गाड़ी भेज दी थी। वह पंडित जी के गायन की मुरीद थी। उनके भजनों को हमेशा सुनती थी। राजभवन और भातखण्डे के बीच अधिक दूरी भी नहीं थी। वह शीघ्र ही आ गई। क्योकि सूचना मिलने के बाद वह पहले ही राजभवन पोर्टिको में आ गई थी।

 

इसके बाद घण्टों पंडित जी का गायन चला,उपस्थित श्रोता भाव विभोर होकर सुनते रहे। उस समारोह में पंडित जसराज और बीएल जोशी के हांथो शास्त्रीय संगीत में पीएचडी उपाधि लेने वाले डॉ दीपक कुमार भावुक होकर उन पलों को याद करते है। कहते है कि पंडित जी की संगीत साधना प्रत्येक साधक को प्रेरणा देती रहेगी। उस समारोह में पंडित जी के ओजस्वी गायन में राग मधुवंती की मधुरिम स्वर लहरियों से लखनऊ के मध्य सफ़ेद बारादरी का पूरा वातावरण गूंज उठा था। पुनः भीमपलासी राग में ॐ नमों भगवते वासुदेवाय से मंत्रमुग्ध वातावरण ज़ैसे भक्तिमय देवालय स्वरूप हो गया। भातखण्डे संगीत संस्थान डीम्ड यूनिवर्सिटी लखनऊ के इसी प्रथम दीक्षांत समारोह 2012 उनकी गरिमामयी उपस्थिति यादगार बन गया था। नब्बे वर्ष की अवस्था में उनका निधन हुआ। आठ दशकों तक उन्होंने संगीत साधना की थी। जन्माष्ठमी पर वह वृंदावन में एक भक्त के रूप में भजन गाते थे। शास्त्रीय और अर्ध शास्त्रीय स्वरों पर उनका संगीतमय नियंत्रण था। उन्होंने भारत,कनाडा, अमेरिका आदि अनेक देशों में शास्त्रीय संगीत सिखाया,उसको प्रतिष्ठा दिलाई। उनके पिता पंडित मोतीराम ही उनके पहले संगीत गुरु थे। बाद में उनके बड़े भाई पंडित प्रताप नारायण ने उन्हे तबला वादन की शिक्षा प्रदान की।

बड़े भाई। पंडित मनीराम के साथ अपने एकल गायन प्रदर्शन में अक्सर शामिल होते थे। वह मूलतः मेवाती घराने के संगीत साधक थे।  इसमें ख़याल’ गायन का विशेष महत्व था। बाद में उन्होंने ख़याल के साथ ठुमरी आदि को जोड़कर अपनी विशिष्ट शैली प्रस्तुत की। उन्होंने कई प्रकार के दुर्लभ रागों का भी सृजन किया। उनको पद्म विभूषण,संगीत नाटक अकादमी,पद्म श्री, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार के साथ ही अनेक सम्मानों से विभूषित किया गया था।।
सादर श्रद्धासुमन,,,,

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