अमरदीप सिंह, गुजरात
अदालत के मुताबिक एकतरफा जांच की गई
नरोड़ा गांव नरसंहार मामले में अदालत के अवलोकन में पाया गया कि दंगों के दौरान किसी को भी जिंदा नहीं चलाया गया था पटाखों के चलते पिंजरे में आग लगी थी और उस आग से 11 लोग जिंदा जलकर मर गए थे।
20 अप्रैल को नरोड़ा गांव नरसंहार मामले में सभी 67 आरोपियों को निर्दोष करार देते हुए विशेष अदालत ने बरी कर दिया जिसके बाद फैसले को लेकर काफी चर्चा हुई लेकिन 1728 पन्ने के पूरे फैसले में जो अदालत का अवलोकन है उस पर पता चलता है कि एसआईटी ने अपनी जांच ठीक से नहीं की जिसके चलते उसमें कई खामियां थी , फैसले में साफ तौर पर लिखा गया है कि जांच एक तरफा थी, एसआईटी प्रमुख आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश कर पाई खासकर माया कोडनानी, जयदीप पटेल बाबू बजरंगी दंगों के वक्त वहां मौजूद नहीं थे बल्कि उनका लोकेशन सोला के सिविल अस्पताल का पाया गया , एसआईटी ने घटनास्थल पर मौजूद 20 होमगार्ड में से एक का भी स्टेटमेंट नहीं लिया था, घटना के समय को लेकर भी एसआईटी की जांच में विरोधाभास देखने को मिला, घटनास्थल पर गैस सिलेंडर ब्लास्ट की कनेक्शन कोई भी पूरी तरह से तहकीकात नहीं की गई, वहीं तमाम चश्मदीदों के बयान घटना और एक दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे।
गौरतलब है कि गोधरा में साबरमती रेल हादसे के बाद 2002 में गुजरात भर में दंगे हुए थे जिसमें नरोड़ा गांव के दंगों में 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था जिसमें कुल 86 आरोपी थे जिनमें से 18 की ट्रायल के दौरान मौत हो गई थी प्रमुख तौर पर 2002 में मुख्यमंत्री मोदी के कैबिनेट में मिनिस्टर माया कोडनानी भी इन दंगों की आरोपी थी।