डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

कोरोना संकट ने मानव जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। प्राचीन भारतीय जीवन शैली,आयुर्वेद,योग और प्रकृति संरक्षण संवर्धन आदि के प्रति दुनिया में जागरूकता आई है। उपभोगवादी पाश्चात्य संस्कृति के नुकसान को प्रत्यक्ष देखा गया। प्रकृति के असीमित दोहन ने संकट को बढ़ाया है। इसका समाधान भारतीय संस्कृति से ही संभव है। यहां के ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले ही इस संबन्ध में वैज्ञानिक अनुसंधान कर लिए थे। इतना ही नहीं प्रकृति संरक्षण के विचार को सहज रूप से जीवन शैली में शामिल कर दिया था। इसमें वृक्ष नदी पर्वत सभी को दिव्य मान के प्रणाम किया गया। घर आंगन में तुलसी जी गांव में पीपल बरगद नीम लगाने का विधान किया गया। पंचवटी की स्थापना को प्रोत्साहन दिया गया। यह सब सहज व स्वभाविक रूप में जीवन के अंग बन गए। प्राचीन भारत को समृद्ध बनाने में इन सबका भी योगदान रहा है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव भारत पर भी हुआ। प्रकृति संरक्षण व संवर्धन के प्रति पहले जैसा सम्मान नहीं रहा। लेकिन कोरोना संकट ने अपनी जड़ों की तरफ लौटने की प्रेरणा भी दी है। दूसरी कोरोना लहर के प्रारंभ में ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ा। तब वृक्षों के महत्व की भी चर्चा शुरू हुई। उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद ही वन महोत्सव को नए स्वरूप में संचालित करने का निर्णय लिया था। वह महोत्सव की यह यात्रा प्रतिवर्ष नए कीर्तिमान स्थापित करते हुए आगे बढ़ रही है। इस बार तीस करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। बड़ी सीमा तक यह लक्ष्य पूरा हुआ। शेष पौधों को इस वर्षा काल में रोपा जाएगा। इस बार लोगों को वृक्षों की महिमा व उपयोगिता नए सिरे से बताई गई। जिससे सभी लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हों। बताया गया कि वृक्ष वायुमण्डल से हानिकारक गैसों को हटाकर ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करते है। इनसे ग्रीन हाउस का प्रभाव कम होता है। वायु की गुणवत्ता में वृद्धि होती हैं। वृक्ष की पत्तियां धूल के कणों के अच्छे संग्रहक के रूप में होती हैं।

पर्यावरण शुद्ध करने, धूल व तापमान नियंत्रण व ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण में सहायक वृक्ष प्रजातियों पीपल, बरगद, पाकड़, गूलर, नीम, आम, जामुन, महुआ,इमली, अमलतास,अशोक, सहजन का वृक्षारोपण वृहद पैमाने पर किया गया है। यह भी बताया गया कि एक वृक्ष प्रतिवर्ष औसतन दो सौ साठ पाउण्ड अथवा तिरासी हजार लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन करता है। एक व्यक्ति को प्रतिदिन साढ़े पांच सौ लीटर ऑक्सीजन की आवश्यकता रहती है। वर्तमान वृक्षारोपण जन आन्दोलन में प्रदेश में तीस करोड़ पौधरोपण से भविष्य में स्थापित होने वाले वृक्ष लगभग साढ़े बारह करोड़ नागरिकों की ऑक्सीजन की आवश्यकता को पूरा करेंगे। वृक्ष कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण शुद्ध करते हैं। वनावरण एवं वृक्षावरण कार्बन सिंक का कार्य करते हैं। एक परिपक्व वृक्ष पचास पाउण्ड प्रतिवर्ष कार्बन डाई ऑक्साइड अर्थात तेरह पाउण्ड कार्बन अवशोषित करता है। तीस करोड़ पौधरोपण से स्थापित होने वाले वृक्षों द्वारा लगभग करीब नौ लाख मीट्रिक टन कार्बन का अवशोषण होगा।औषधीय पौधों,फलों एवं सहजन जैसे वृक्षों के उत्पाद रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि एवं पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ग्राम पंचायतों में सहजन के साथ-साथ औषधीय एवं फलदार प्रजातियों के पौधों का रोपण किया गया।राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल ने झांसी के सिमरधा बांध पर स्मृति वाटिका में एक ही दिन में पच्चीस करोड़ पौधरोपण कार्यक्रम का शुभारम्भ किया था। उन्होने यहां हरिशंकरी पौधा रोपित किया था। इस कार्यक्रम में पांच हजार पौधे लगाए गए तथा ग्रामवासियों को दस हजार सहजन के पौधे वितरित किए गए थे। आनन्दी बेन ने कहा कि वन महोत्सव प्रकृति के उपकारों के प्रति  कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है। हमारी समृद्ध संस्कृति व परम्परा में पेड़ पौधों को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। भारतीय संस्कृति में वृक्षों को अत्यन्त पूजनीय माना जाता है। पीपल वनस्पति जगत में सर्वश्रेष्ठ है। नीम,आंवला बरगद आदि वृक्ष औषधीय गुणों का भण्डार होने के साथ साथ मानव सेहत को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रदेश सरकार का इतना बड़ा लक्ष्य जन सहयोग से ही पूर्ण किया जा सकता है। उन्होंने प्रदेश को हरा भरा बनाने एवं विकास पथ पर अग्रसर रखने की दिशा में राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे प्रदेश सरकार प्रयास सराहनीय है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनपद सुल्तानपुर में पौधरोपण कर वृक्षारोपण की शुरुआत की थी। उन्होंने ग्रीन फील्ड पूर्वांचल एक्सप्रेस वे सुल्तानपुर में हरिषंकरी का पौधा रोपित किया था। प्रदेश में सड़क किनारे विषेषकर एक्सप्रेस वे, राष्ट्रीय राजमार्ग,राज्य राजमार्ग तथा राष्ट्रीय राजमार्ग व सर्विस लेन के बीच हरित पट्टी विकसित की जा रही है।बाल्मीकि रामायण में अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों एवं वनों के समूह का उल्लेख है। योगी आदित्यनाथ ने रामवन गमन पथ को वन महोत्सव अभियान में शामिल किया। इसके अंतर्गत इस मार्ग पर रामायण में उल्लखित वाटिकाओं की स्थापना हो रही है। वन महोत्सव में नये कीर्तिमान बन रहे हैं। इनमें से एक रिकॉर्ड वर्तमान राज्य सरकार के कार्यकाल में आज सौ करोड़वां पौधा लगाने का है। विगत पांच वर्षाें में सौ करोड़ पौधों का रोपण किया गया है। योगी ने कहा कि सौभाग्य है कि आज उन्हें भारत की प्राचीन ऋषि परम्परा से सम्बन्धित पंचवटी, नवग्रह तथा नक्षत्र वाटिका के पवित्र पौधों का रोपण करने का अवसर प्राप्त हुआ। हम सभी भारत की ऋषि परम्परा की विरासत से प्राप्त पवित्र वृक्षों का रोपण कर अपनी प्राचीन परम्परा से खुद को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। रामायण में उल्लिखित अट्ठासी वृक्ष प्रजातियों में से प्रदेश की मृदा,पर्यावरण व जलवायु के अनुकूल तीस वृक्ष प्रजातियों का रोपण कराया जा रहा है। इस वृहद स्तरीय वृक्षारोपण से ग्रामवासियों को फल, चारा,इमारती लकड़ी व औषधियां मिलेंगी। प्रदेश की ग्राम सभाओं में स्मृति वाटिका की स्थापना कर कोविड महामारी अथवा अन्य कारणों से बिछडे़ प्रियजन की याद में पौधरोपण किया गया। किसानों की आय में वृद्धि हेतु ग्राम पंचायत की भूमि पर इमारती एवं फलदार पौधों का रोपण किया गया। खाद्य सुरक्षा व पोषण के लिए मिड डे मील में उपयोग करने हेतु प्रदेश के विद्यालयों में सहजन के पौधों का रोपण किया गया।

पौधशालाओं एवं वृक्षारोपण में पौधों को पोषक तत्व देने के लिए करीब तीस हजार कुण्टल जीवामृत का उपयोग पौधशालाओं में किया गया।पौधशालाओं में तथा वृक्षारोपण में जैविक कीटनाशक का उपयोग किया गया है। पौधों के स्वास्थ्य व उच्च वृद्धि दर हेतु उन्हे समुचित पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए वन विभाग की पौधशालाओं व पौधरोपण क्षेत्रों में बारह हजार कुण्टल से अधिकफ़ कम्पोस्ट खाद का उपयोग किया गया।
जाहिर है कि उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने पर्यावरण प्रकृति संवर्धन के भारतीय चिंतन को महत्व दिया। सरकार पर्यावरण व प्रकृति संरक्ष्ण के प्रति सजग है।

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