सलिल पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार, मिर्जापुर.

 

  • सास-बहू, पिता-पुत्र, साधु-संन्यासी सभी श्रेष्ठ ढंग से अपनी भूमिका निर्वाह करें
  • आरती और मंच पर पैसा न चढ़ाने की अपील वाले निराले सन्त

मिर्जापुर । निस्पृह और निर्विकार सन्त स्वामी विजयानन्द गिरि जी महराज ने जिंदगी के रंगमंच पर पूर्ण योग्यता और कुशलता से अभिनय करने की सलाह दी पर सजग यह भी किया कि किए गए अभिनय से निर्लिप्त भी रहना चाहिए। उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट करते हुए कहा कि जैसे रामलीला के मंच पर कलाकार जब उत्तमोत्तम अभिनय करता है तो उसके अभिनय की प्रशंसा होती है, उसे पुरस्कार तथा सम्मान मिलता है लेकिन मंच से उतरने के बाद वह अभिनीत कलाकार का नाम नहीं बल्कि दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले नाम का परिचय देता है। वह यह नहीं परिचय देता कि मैं अब मेघनाद (मंच वाला नाम) हूँ।
स्वामी विजयानन्द गिरि नगर के बूढ़ेनाथ मुहल्ले में स्थित बेटीजी के मन्दिर में बुधवार, 4/11 से शुरू 8 दिवसीय प्रवचन को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिंदगी में जो भी रोल मिले, उसे बखूबी निर्वाह किया जाए लेकिन उसके प्रतिफल की आशा न की जाए तो यह भी ईश्वरीय सेवा है।

सास-बहू से लेकर पिता-पुत्र और साधु-संन्यासियों से अपील

स्वामी विजयानन्द गिरि जीवन से जुड़े मार्ग पर आधारित उद्बोधन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कोई महिला विवाह के बाद ससुराल आती है। फिर मां बनती है। उसका बेटा बड़ा होता है और जब उसकी शादी होती है तो उसकी पत्नी को कोसते हुए कहती है कि पराए घर की लड़की आते ही हमारा घर बिगाड़ दी। जबकि सास को यह सोचना चाहिए कि वह भी पराए घर से ही आई थी। सास को उत्तम रोल अदा करने के साथ बहुओं से भी कहा कि वे उत्तम बहू बने तभी उत्तम सास बन पाएंगी। उन्होंने पुरुषों से भी कहा कि वे पिता-पुत्र, देवर, ज्येष्ठ, दामाद की भूमिका उत्तम ढंग से निभाए तो उसका लाभ महसूस होगा। किसी भी पीठ पर बैठे संन्यासियों से अपेक्षा के माध्यम से स्वामी जी ने हर क्षेत्र में तैनात पदासीन लोगों से भी अपेक्षा की कि वे ऐसा कार्य करे जिससे उनकी ख्याति बढ़े।

कथा-प्रवचन सत्संग नहीं

स्वामी विजयानन्द गिरि ने कहा प्रायः लोग कथा-प्रवचनों को सत्संग मान लेते हैं। जबकि जीवन में संकीर्तन, सत्-चिंतन के बाद कथा-प्रवचन सद्चर्चा की श्रेणी में आता । अच्छी तथा सकारात्मक बातों एवं कथाओं को सद्चर्चा मानना सही है । जबकि सत्संग तो परमात्मा के साथ जीवन को जोड़कर रहना कहा जाएगा। यह परमात्मा अनादि काल से मनुष्य के अंतर्तम में रहता चला आ रहा है। उन्होंने कहा कि सेवा तो केवल मानव कर सकता है। उदाहरण देते हुए कहा कि गाय से सेवा के रूप में दूध तो लिया जा सकता है लेकिन गाय मनुष्य की तरह सेवा नहीं कर सकती है।

आरती और मंच पर पैसा न चढ़ाएं और मंच का फोटो न लें

प्रायः प्रवचनों में आरती तथा दानपात्र में पैसा चढ़ाने की अपील होती है लेकिन स्वामी विजयानन्द गिरि के प्रवचन में बैनर लगा रहता है कि किसी प्रकार का रुपया-पैसा न चढ़ाया जाए तथा मंच का फोटो नहीं लिया जाए। महराज गत कई वर्षों में यहां आधा दर्जन से अधिक बार बड़े बड़े कार्यक्रमों में आए हैं। हर बार वे इसी तरह का बैनर लगाते हैं। वे सिर्फ गीता-प्रेस की संस्कार देने वाली पुस्तक पढ़ने पर बल देते हैं। उनके उद्बोधन का आधार ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदास का प्रवचन विशेष रूप से रहता है।

प्रथम दिन के कार्यक्रम में कर्मचारी नेता चंद्रशेखर मिश्र, शुभम् मिश्र, अनिल दुबे, लड्ढा जी, अमरेश दुबे, वी वी पांडेय आदि शामिल थे।

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