मजदूर दिवस विशेष…

 

 

 

 डा. डी.के.त्रिपाठी की कलम से….

आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है। 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में सबसे पहले 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया। जिसमें काम की अधिकतम अवधि 8 घंटे तय की गई भारत में इसकी शुरुआत 1 मई 1923 को चेन्नई राज्य में मजदूर दिवस के रूप में प्रारंभ हुआ।

आप जानते हैं आज पूरे भारत में मजदूरी प्रदान करने की कोई निश्चित गाइडलाइन अथवा दिशा निर्देश नहीं है। 1976 में बना बधुआ मजदूर प्रणाली देश को मुंह चीढ़ा रही है मजे की बात है संविधान के अनुच्छेद 23 उल्लंघन हो रहा है। जरा बताइए एक शिक्षक ₹2000 पर किसी विद्यालय में शिक्षा देने को मजबूर हो तो उसे बंधुआ मजदूर नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे।

उनका शोषण संविधान और सरकार के आदेश अथवा जी ओ को ताक पर रखकर किया जा रहा है। कहना यह है कि जब सरकार ने शासनादेश निकाल दिया है की 25% धनराशि विद्यालय अपने प्रबंधन के मद में खर्च करेंगे और 75% धनराशि संबंधित विद्यालय में पढ़ाने वाले अध्यापकों के वेतन भक्ते पर खर्च किया जाएगा यदि वास्तव में इस प्रकार का अध्यादेश सरकार द्वारा दिया गया है तो उसका अनुपालन क्यों नहीं हो रहा है।

आप जानते हैं कि आज तमाम संस्थाएं बड़े लोगों जिनमें विधायक, सांसद ,मंत्री ,प्रशासनिक अधिकारी ठेकेदार ,नामी पत्रकार जैसे लोगों द्वारा बनाया गया है उन्हें संविधान और नियम का पालन करना चाहिए।

आज किसी को संविधान का ख्याल नहीं आता रात दिन संसद व विधानसभाओं में छाती पीट कर संविधान की दुहाई देने वाले मौन व्रत धारण कर लिए हैं शिक्षक ठेला वाले, खोमचा वाले, दिहाड़ी मजदूर, कंस्ट्रक्शन मजदूर, फैक्ट्री मजदूर जैसे हजारों तरीके के मजदूरों को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है हम किसी पर आरोप और प्रत्यारोप लगाने पर विश्वास नहीं रखते मेरे किसी शब्द से कोई व्यक्ति आहत हो हम यह नहीं चाहते लेकिन नियमों पर चलना तो पड़ेगा।

जय हिंद जय भारत

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