सत्यम ठाकुर, ब्यूरो चीफ, गुजरात…..

एंकर- अहमदाबाद में लगातार बढ़ रही कोरोना मरीजो की संख्या ने अहमदाबाद को कोरोना का ज्वालामुखी बना दिया है। आज गुजरात में कुल मरीजों की संख्या में से ६० फीसदी संख्या सिर्फ अहमदाबाद से है। वही मौत के मामले  में गुजरात में हुई कुल मौत में से ९० फीसदी मौत सिर्फ अहमदाबाद से है। अहमदाबाद सहित पुरे गुजरात की इस विस्फोटक स्थिति पर हाई कोर्ट ने भी सख्त टिप्पड़ी कर सरकार को लताड़ा भी है। जब टोटल समाचार की टीम ने इस मामले की समीक्षा की तो पता चला की अहमदाबाद की ये भयावह स्थिति यु ही पैदा नहीं हुई है।   इसके पीछे कई लोग जिम्मेदार है।

साबरमती नदी के दोनों किनारे पर बसा ये हैं अहमदाबाद।  इसी नदी के किनारे बना ये रिवर फ्रंट  हैं।  जो अक्सर किसी न किसी वजह से सुर्खियों में रहता था।  आज ये वीरान पड़ा है।  ये वीरानी कोरोना के दहशत की कहानी अपने आप बयां कर रही है। देश के सबसे पहले हेरिटेज सिटी का दर्जा प्राप्त करने वाला अहमदाबाद आज कोरोना मरीजों से भरा पड़ा है। रोजाना सैकड़ो अहमदाबादी कोरोना की चपेट में आ रहे है। रोजाना दर्जनों लोगों को कोरोना मौत बन कर निगल रहा है। इसी कोरोना के चलते अहमदाबाद की खूब सराहे गए म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा का तबादला भी कर दिया गया हैं।

पुराना अहमदाबाद शहर जिस वाल सिटी के नाम से जाना जाता है। उसकी किसी भी गली में चले जाइये आपको वो रास्ता बंद दिखाई देगा। वहा एक डरवाना बोर्ड दिखाई देगा,  जो चीख चीख कर कह रहा होगा कि इन इलाकों में आपका आना मना हैं।  वो डरावना बोर्ड रेड ज़ोन का है। कोरोना के चलते शहरी इलाको को पहले तीन ज़ोन में बाटा गया था। ग्रीन ज़ोन मतलब की कोई कोरोना केस नहीं। ऑरेंज जोन यानि की कुछेक मामले हो और रेड जोन का मतलब खतरनाक स्थिति वाला इलाका। जो पूरी तरह से कोरोना की गिरफ्त में आ चूका हो।  मगर चिंता की बात है की अब कोई भी ग्रीन जोन अहमदाबाद में नहीं रहा अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ रहे मामलों को ध्यान में रखकर अहमदाबाद दो भागों में विभाजित किया गया हैं। कुल ४८ वार्ड में से १२ वार्ड ऐसे है जहा कोरोना पोसिटिव मरीजों की संख्या बहुत ही ज्यादा है। जिसे रेड जोन में डाला गया है जबकि बाकी सभी वार्ड ऑरेंज जोन में है।

  • आखिर अहमदाबाद को कोरोना ने कैसे पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया।

  • कौन हैं इसका जिम्मेदार।

  • कहां से हुई चूक।

  • किसने की लापरवाही।

ऐसे कई सवाल है जो अहमदाबाद गुजरात सहित देश के कई जगहों पर लोगो की ज़ुबान पर है। शहर के चप्पे चप्पे पर कोरोना की दहशत और आतंक साफ़ देखा जा सकता है। शहर का कोई इलाका ऐसा नहीं है, जो कोरोना के कहर से बच पाया हो।

 

एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी के द्वारा हाईकोर्ट में दिये गये जवाब पर ध्यान दे तो साफ साफ पता चलता हैं कि अगर टेस्ट ज्यादा किये गए तो 70 फीसदी आबादी पाजीटिव मिल सकती हैं.

 ताजा आकड़ो के मुताबिक

गुजरात के कुल 15205 कोरोना पॉजिटिव मरीजों हैं। जिसमें से सिर्फ अहमदाबाद में ही 12 हजार के करीब मरीज है। वही गुजरात में अब तक 938 मौते हुई हैं। उसमें से सिर्फ अहमदाबाद में अकेले 764 मौते हुई हैं।

सरकार के द्वारा दिये गये ये आकड़े ही इस बात गवाही दे रहे हैं  कि अहमदाबाद में इस समय कितना डरवाना मंजर हैं। इन आकड़ों के साथ जब  हम आगे बढ़े औरलकई लोगों से बात की तो चौकाने वाले तथ्य सामने आये-

  1. अहमदाबाद में मूलभूत नियंत्रण नीतियां लागू करने में प्रशासन नाकाम रहा।
  2. समय से कदम न उठाने के कारण प्रशासन के रवैये ने और मुश्किलें खड़ी कर दी।
  3. सिविल अस्पताल को कोविड अस्पताल के तौर पर तैयार करने से पहले कोविड 19 के मरीज़ों को पुराने अस्पताल में भर्ती किया गया.
  4. किसी तैयारी के बगैर आलम यह था कि कोविड वार्ड और जनरल वार्ड में स्पष्ट अंतर नज़र नहीं आ रहे थे। ऐसे में स्वास्थ्यकर्मी दोनों तरफ के मरीज़ों के संपर्क में रहे.
  5. संक्रमण नियंत्रण केंद्र और कोविड 19 की संरचनात्मक व्यवस्थाओं में हुई देर से अहमदाबाद को कीमत चुकानी पड़ी.
  6. इस देर का सबसे बड़ा कारण यह था कि प्रशासन ने अपने फैसलों के लिए टीम में किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ को शामिल नहीं किया।
  7. शुरुआत में जब कोरोना की खबरे आई तब गुजरात में उसे आने से रोकने की बजाय पूरी सरकार ट्रम्प के स्वागत की तैयारियों में जुटी थी। 2 विदेश से आ रहे लोगो की स्क्रीनिंग पर सुस्ती दिखाई
  8. अहमदाबाद वाल सिटी में जमातियों ने डेरा डाला कई दिनों तक वो सामने नहीं आये और अन्य लोगो ने भी लक्षण होने के बावजूद अपना चेकअप नहीं करवाया।
  9. घनी बस्तियों में लाकडाउन का अमल करवाने में लापरवाही बरती गई। इन इलाको में कर्फ्यू लगाने के बाद भी 4 घंटे की ढील दी गई। जिस वक्त ज्यादा से ज्यादा भीड़ हुई।
  10. किसी भी पाबन्दी का अचानक एलान होने से लोग एक साथ किराना व सब्जी की दुकानों पर टूट पड़े। यहाँ तक की मुफ्त राशन लेने भी लोगो ने सोशल डिस्टन्सिंग का ख्याल नहीं रखा।
  11. सुपर स्प्रेडर एक बड़ा कारण रहे  लॉक डाउन के बाद भी सब्जियों की हॉल सेल मार्केट में लोगो का जमावड़ा हुआ। जो होल सेलर से रिटेलर और रिटेलर से लोगो तक पंहुचा। इसी तरह दूध और किराना विक्रेताओं से भी कोरोना बड़े पैमाने पर फैला। 
  12. सीनियर डाक्टरों का गैर जिम्मेदाराना रवैया – कोरोना के डर से सीनियर डॉक्टर या तो छुट्टी पर चले गए या कोविड-19 के मरीजों से दूर रहे। जिसकी वजह से पूरा भार जूनियर डाक्टरों पर आ गया और इलाज में कोताही हुई।
  13. म्युनिसिपल कमिश्नर और राज्य सरकार के बीच संकलन का अभाव और कोई ठोस रणनीति का ना होना भी एक अहम् कारण माना जा रहा।
  14. बढ़ते डेथ रेट में सबसे अहम् कारण लेट रिपोर्टिंग देखा गया 15 स्वदेश वेंटिलेटर धमन को भी ज्यादा मौत का कारण बताया जा रहा है।
  15. मंत्रीयो का अधिकारियो के भरोसे रहना भी एक कारण बताया जा रहा है।
  16.   इन सबके साथ पुरानी गंभीर बीमारियां भी ज्यादा मौत का कारण रही।

 

कोरोना का कहर अहमदाबाद के म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा पर भी बरपा उन्हें बेक़ाबू  कोरोना के चलते पद छोड़ना पड़ा इन सबके बीच गुजरात  सरकार कोरोना मरीजो की जानकारी देने में लगातार ऐसे हथकंडे अपनाती रही जिससे एक असमंजस की स्थिति बनी रहे कभी जिलावार जानकारी देनी बंद कर दी तो कभी मृतकों की हेल्थ हिस्ट्री और डेथ कॉज हटा दिया।

अहमदाबाद के कांग्रेस विधायक गयासुद्दीन शेख ने मंगलवार को सिविल अस्पताल में उच्च मृत्यु दर और ठीक होने की दर कम होने पर सवाल उठाए। गयासुद्दीन शेख़ अहमदाबाद के रेड ज़ोन इलाके पर मुख्यमंत्री से विशेष बैठक कर स्थिति का ब्यौरा दिया था और लगातार सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट मानव अधिकार आंदोलन और मुख्यमंत्री कार्यालय का दरवाजा खटखटाया।  उन्होंने मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से दखल देने की मांग की है। कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में अहमदाबाद  में तेज़ी से बढ़ी मृत्यु दर  ने नागरिक प्रशासन, स्वास्थ्य सेक्टर आदि पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ प्रशासन का मानना है कि इसका कारण मरीज़ों का देर से अस्पताल में दाखिल होना और मरीज़ों का अन्य बीमारियों से ग्रस्त होना रहा है। तो दूसरी तरफ भारत में Covid 19 की राष्ट्रीय मृत्यु दर से बहुत ज़्यादा और मुंबई से दोगुनी मृत्यु दर होने पर अहमदाबाद पर सबकी नज़रें हैं।

मृत्यु दर

देश में कोविड 19 से जुड़ी मृत्यु दर अब तक 2.98% रही है। जबकि मुंबई में 3.34% और नई दिल्ली में 1.68% लेकिन अहमदाबाद में मृत्यु दर 6.63% दर्ज की जा रही है.

फ़िलहाल स्थिति ये है की स्वास्थ्य कार्यकर्ता सीमा से ज़्यादा काम कर चुके हैं।  स्वास्थ्य सुविधाएं चूर हो चुकी हैं और नीतियों की पोल खुल चुकी है। अहमदाबाद में तेज़ी से बढ़ी मृत्यु दर के पीछे के ये कारण सामने आने के बाद यह भी ज़ाहिर हो चुका है कि मरीज़ों की देखभाल में बहुत समझौते हुए. अब जबकि पश्चिम अहमदाबाद में लॉकडाउन हटाया जा रहा है और कई प्रतिबंधों में छूट भी दी जा रही है। ऐसे में कोविड 19 संक्रमण के दूसरे दौर को लेकर अगर शहर ने पूरी सतर्कता और क्षमता न दिखाई। तो नतीजे इससे भी ज़्यादा खराब होने की आशंका होगी। कांग्रेस इन तमाम मौको पर जहा सरकार को घेर रही है वही सरकार इसे कांग्रेस की गन्दी राजनीती बता रहे है। कांग्रेस के एक दल ने सिविल अस्पताल में जा कर लोगों से मुलाकात की और सरकार के कामकाज पर कई सवाल उठाये है

अहमदाबाद के इस बिगड़े हालत की सुध सरकार ले न ले लेकिन इस पर जमकर राजनिती और अफसर शाही के खेल हो रहे है। एक नेता ट्वीट कर पूर्व म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा को इसका जिम्मेदार मानता है। तो वही विजय नेहरा अपनी नीतियों को सही करार देकर वरदान नहीं मांगूंगा मैं कविता को ट्वीट कर खुद को सही साबित करने का प्रयास कर रहे है। यहाँ ये कहना जरुरी हो जाता है की समय पर चेतता प्रशासन तो..इन तमाम अव्यवस्थाओं के चलते अचानक नागरिक अस्पताल पर बोझ  नही बनते। इस स्थिति से निपटने के लिए अहमदाबाद नगर पालिका ने कोविड 19 अस्पतालों की संख्या बढ़ाई, जो अब 42 हो गई है लेकिन यह कदम पिछले हफ्ते यानी 16 मई को उठाए गए. यही व्यवस्थाएं समय रहते की गई होतीं तो हालात बेहतर हो सकते थे ,

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here