डॉ दिलीप अग्निहोत्री

 

बेहिसाब एहसानों से
दबे हुए हर पल
किसकी कितनी बात करें
कर्जा जीवन भर।
कुछ नेकी कर भूल गए
याद दिलाएं जब
कुछ एहसास कराते ऐसे
शर्मिंदा है हम।।
समय समय की बात है
खुशी कभी है गम
उजियारे अंधियारे का
चलता रहता द्वंद।
खिंचे हुए दो पाले हैं
अपना अपना दम
हारे जीते कोई भी
दूर खड़े है सब।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here