राजेश कुमार लंगेह

 

लड़ना है तो लड़ सिपाही की तरह….

आखिरी गोली, आखिरी दुश्मन, आखिरी साँस की तरह..

उम्मीदों पर टिकी हैं सारी दुनिया जहाँ ,

मत डर  कायर बुलबुलों की तरह…

लड़ना है तो लड़ सिपाही की तरह..

आखिरी गोली, आखिरी दुश्मन, आखिरी साँस की तरह..

मर्ज सख्त हैं… नित नयी गिरफ्त है यह

हकीमों, दवाओं का सरदर्द है यह

माना  अनदेखा, अजनबी, प्रेत सा दुश्मन है यह

पर तेरी हिम्मत के आगे  सिर्फ खाक है यह

लड़ना है तो लड़ सिपाही की तरह..

आखिरी गोली, आखिरी दुश्मन, आखिरी साँस की तरह..

 

सांसे घोंट ,निचोड़ रहा जान है यह

उम्र का लिहाज नहीं, सब पर भारी है यह

माना लाइलाज किटाणु चीन की पैदावार है यह…

पर याद रखना वक़्त 1962 सा है यह

उठी थी शमशीर 62 में, जब सिपाही जागा था

देख उसके जोश को दुश्मन थर थर काँप भागा था

हज़ारों में दुश्मन था एक अकेला डटा था

उसके हौंसले के सामने हिमालय भी नतमस्तक हुआ था

आज वही हिमालय हैं लाजको चीनी कीटाणु है

उठ खड़ा हो उस जांबाज सिपाही की तरह

लड़ना है तो लड़ सिपाही की तरह..

आखिरी गोली, आखिरी दुश्मन, आखिरी साँस की तरह..

मुश्किल वक़्त हैं, हिन्दुस्तानी तु सख्त हैं

उठ की तू शूरवीरों का खून, शिव की तरह खुद में मस्त हैं

खोल तीसरी आंख, वो होंसला वीर शिवाजी की तरह

लड़ना है तो लड़ सिपाही की तरह..

आखिरी गोली, आखिरी दुश्मन, आखिरी साँस की तरह..

सबसे बड़ा इलाज दिमाग में है

उम्मीद में हैं, साहस में है

गिर कर उठना,उठ कर लड़ने में है

उठ की अब तेरे जिस्म की पुकार है..

हारे मन के मर्ज में दवाई भी बेकार है

उठी है धधक पौरूष की तरह

लड़ना है तो लड़ सिपाही की तरह..

आखिरी गोली, आखिरी दुश्मन, आखिरी साँस की तरह..

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