लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की कलम से

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कोरोनावायरस के बीच पीपीई किट (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट किट) बाजार में मानकों के मुताबिक नहीं बिक रहीं हैं। कई निजी चिकित्सक अपने लिए तो स्टैंडर्ड क्वालिटी की किट लेते हैं, मगर पैरामेडिकल स्टाफ के लिए डेढ़ सौ रुपये वाली किट खरीद रहे हैं। यह किट वाटरप्रूफ नहीं होती है। इनकी टेपिंग भी नहीं रहती। इन्हें स्टरलाइज भी नहीं कराया जाता है। मॉस्क भी घटिया क्वालिटी का होता है। इस किट से लैस व्यक्ति कोरोना संक्रमित की चपेट में आकर किसी भी दशा में संक्रमण से नहीं बच सकता। पीएम भी कह रहे थे कि कोरोना से रोजगार बढ़ा है। उसका नमूना यही है। जिसे मन आया वह पीपीई बनाने लगा।

यह सच है कि कोरोना वायरस को लेकर उद्योग धंधों की सूरत बदलने लगी है। लेकिन उसमें गुणवत्ता कितनी है यह भी देखने की बात है। घटिया पीपीई हमारे कोरोना योद्धा की जान भी ले रहे हैं।

इन दिनों मौके का फायदा उठा कर कपड़ा तैयार करने वाली फैक्ट्रियां मॉस्क व पीपीई किट तैयार कर रही हैं। पीपीई की एक बेसिक किट में एक कवरऑल सूट, जूता कवर, मॉस्क, ग्लब्स, हेडगेयर (चश्मा व फेस शील्ड) व एक बायोडिग्रेडबल प्लास्टिक बैग शामिल होता है। सूट तैयार होने के बाद उसकी टेपिंंग की जाती है। अच्छी किट के सूट का कपड़ा लेमिनेटेड व वाटरप्रूफ होता है। किट तैयार होने के बाद उसे स्टरलाइज कराया जाता है। इस तरह एक किट पर कम से कम 500 रुपये की लागत आती है। इस किट में शामिल वस्तुओं की क्वालिटी और बेहतर करने पर इसकी कीमत उसी अनुपात में बढ़ती जाती है।

कपड़ा बनाने को अधिकृत हैं 473 फर्म

देशभर में पीपीई किट तैयार करने में प्रयोग होने वाले कपड़े के लिए कुल 473 फर्म अधिकृत की गई हैं। सिट्रा ने इनकी सूची अपनी वेबसाइट पर दे रखी है।

सिट्रा का प्रमाणीकरण जरूरी

इन फैक्ट्रियों में तैयार किट का कोयंबटूर स्थित सिट्रा (साउथ इंडिया टेक्सटाइल्स रिसर्च एसोसिएशन) से एप्रूवल लेना अनिवार्य है। ऐसी किट पर यूटीआर यूनिक ट्रांजेक्शन रेफ्रेंस नंबर होता है। इसमें कंपनी के नाम से लेकर बैंक के लेनदेन तक की जानकारी रहती है।

नमूना भेजकर करा सकते हैं एप्रूवल

पीपीई किट तैयार कर रहे जानकारों के मुताबिक किट तैयार करने से पहले कपड़े का सैंपल भेजकर सिट्रा से एप्रूवल लेने का प्रावधान है। अधिकृत फर्म से कपड़ा लेने पर किट तैयार होने के बाद सिर्फ एक ही बार एप्रूवल पर्याप्त होता है।

किट जांचने का अधिकार नहीं

औषधि विभाग के मुताबिक सैनिटाइजर जांचने को शासन से गाइड लाइन है मगर पीपीई किट की क्वालिटी जांचने के संबंध में अभी कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं।

स्वास्थ्य महकमा की माने तो भारतसरकार के अधिकृत जेम पोर्टल के जरिये ही पीपीई किट की खरीद हो रही है। वही उनके लिए मानक हैं। पीपीई किट की क्वालिटी जांचने को कोई निर्देश नहीं है।

पीपीई किट की गुणवत्ता से स्वास्थ्य मंत्रालय संतुष्ट

दूसरी तरफ पीपीई किट की गुणवत्ता पर उठ रहे सवालों को स्वास्थ्य मंत्रालय ने सिरे से खारिज कर दिया है। मंत्रालय के अनुसार जिन पीपीई किट की गुणवत्ता पर सवाल उठाया जा रहा है, उनका सरकार के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड की ओर खरीदे जा रहे पीपीई किट का कोई लेना-देना नहीं है। इसे खरीदने के पहले उसकी गुणवत्ता की जांच की जाती है और मानक पर सही उतरने वाले पीपीई को ही खरीदा जाता है। वस्त्र मंत्रालय से टेस्टिंग लैब से गुणवत्ता की कसौटी पर खरा उतरने वाले तीन लाख पीपीई किट का रोज उत्पादन हो रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वस्त्र मंत्रालय के पीपीई किट की गुणवत्ता की जांच कर प्रमाणित करने के लिए देश में आठ लेबोरेटरी को अधिकृत किया है। सभी पीपीई किट निर्माताओं को इनमें से किसी लैब से गुणवत्ता का प्रमाणपत्र लेना होता है, उसके बाद ही उसे पीपीई किट बनाने का लाइसेंस दिया जाता है। यहीं नहीं, सप्लाई की जाने वाली पीपीई किट में से बीच-बीच में सैैंपल लेकर उसकी गुणवत्ता की जांच करता है। यदि किसी निर्माता के पीपीई किट में गड़बड़ी पायी जाती है, तो तत्काल उसका लाइसेंस निरस्त कर दिया जाता है।

जो राज्य सरकारें निर्माताओं से सीधे खरीदना चाहती है, उन्हें भी वस्त्र मंत्रालय के लेबोरेटरी से प्रमाणित पीपीई किट को खरीदने की सलाह दी गई है। इसके साथ ही लाइसेंस पाने वाले निर्माताओं को केंद्र सरकारी की ऑनलाइन खरीद खरीद प्रणाली (गवर्नमेंट ई-मार्केट प्लेस-जीईएम) पर पंजीकृत होने को कहा जाता है। ताकि राज्य सरकारें जीईएम के माध्यम से इन निर्माताओं से पीपीई खरीद सके। वहीं केंद्र सरकार की ओर से भी राज्यों को 74.48 लाख पीपीई किट और एक करोड़ 11 लाख एन-95 मास्क उपलब्ध कराया गया है।

इस तरह केंद्र सरकार पीपीई की गुणवत्ता में किसी भी तरह के मानक में कमी से इंकार करती है। वह उसे हर तरह से मानक के अनुरूप बताती है।

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